गेंदे की उन्नत खेती
आज विश्व भर में फूलों की मांग दिन प्रतिदिन बढती जा रही है ऐसे में फसल विविधिकरण को अपनातें हुए सामान्य फसलों की बजाय फूलों की खेती की ओर रूख करना चाहिए। फूलों की खेती करके कृषक कम समय में अधिक मुनाफा आसानी से कमा सकता है। भौगोलिक दशा एवं जलवायु के अनुसार विभिन्न फूलों की खेती की जा सकती है जिसमें एक मुख्य स्थान गेंदे की खेती का है। इसकी खुबसुरती एवं टिकाऊपन के कारण पुष्प बाजार में गुलाब के पश्चात सर्वाधिक बिकने वाले पुष्प की श्रेणी में आता है। भारतवर्ष में मुख्य रूप से अफ्रिकन एवं फ्रेंच गेंदे की खेती की जाती है। किसान भाई गेंदे की बुवाई करके कम लागत में अधिक आय प्राप्त कर सकते है।
गेंदा बहुत ही उपयोगी एवं आसानी से उगाया जाने वाला पौधा है। इसका उपयोग खुले पुष्प के रूप में माला बनाने में, वेणी तैयार करने में, गुलदस्ते में, मंडप बनाने के साथ साथ धार्मिक एवं सामाजिक उत्सवों में भी बहुतायत में किया जाता है। भिन्न-भिन्न ऊँचाई एवं भिन्न-भिन्न रंगों के कारण लेण्ड स्केप की खुबसुरती बढाने के भी काम आता है। इसके साथ सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसकी खेती वर्ष पर्यन्त आसानी से की जा सकती है तथा इसमें कम पानी की आवश्यकता होती है। साथ ही इसके पुष्प लंबे समय तक खिलते है और संग्रहण क्षमता भी अच्छी होती है। इन सभी फायदों के चलते इसकी खेती आर्थिक दृष्टि से लाभ का सौदा सिद्ध होगी।
इसके अतिरिक्त यह बेहतर ट्रेप क्रोप के रूप में भी उगाई जाती है। सूत्रकृमि प्रभावित क्षेत्र में इसकी फसल लेने से सूत्रकृमियों का प्रभाव कम अथवा पूर्ण रूप से समाप्त हो जाता है।
जलवायु : गेंदे की खेती वर्षभर आसानी से की जा सकती है तथा सभी प्रकार की जलवायु में आसानी से उगाया जा सकने वाला पौधा है परन्तु शीतोष्ण एवं सम शीतोष्ण जलवायु उपयुक्त रहती है। पौधे की अच्छी बढवार एवं अधिक पुष्पन के लिए मुख्यतया नम जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी खेती सर्दी, गर्मी एवं वर्षा तीनों मौसम में आसानी से की जा सकती है। उच्च तापमान, अधिक ठण्ड एवं पाला फसल पर विपरीत प्रभाव डालता है।
भूमि : सामान्यतया गेंदे की खेती सभी प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है। परन्तु अधिक उपज प्राप्त करने के लिए अच्छी जल निकास वाली गहरी दोमट मृदा तथा बलूई दोमट मृदा जिसका पी एच मान 6.5 से 7.5 के मध्य हो सर्वोत्तम रहती है।
भूमि की तैयारी : एक गहरी जुताई कर तीन-चार जुताई कल्टीवेटर से कर खेत को तैयार करें तथा अंतिम जुताई से पहले 25 टन गोबर की अच्छी पकी खाद खेत में मिलाएं l
गेंदें की प्रजातियाँ : मुख्य रूप से गेंदे की तीन प्रजातिया उगाई जाती है जो निम्नानुसार है-
1. अफ्रिकन गेंदा : इस किस्म के फूलों को मुख्यतया कट फलावर्स के तौर पर काम में लिया जाता है। इसके तने और शाखाओं में सीधी बढवार होती है। पौधों की लम्बाई अन्य प्रजातियों के मुकाबलें अधिक होती है। पुष्पों का रंग मुख्यतया पीला एवं नारंगी होता है तथा पुष्पों का आकार बडा एवं आकर्षक होता है। इस प्रजाति की मुख्य किस्में निम्नानुसार है - क्यूपिड क्राउन ऑफ गोल्ड़, जायन्ट सनसेट, गोल्डन एज, हैप्पीनेस, हनी कोम्ब, प्रिमरोज, गोल्डन येलो, रिवरसाइड, जायन्ट डबल अफ्रिकन ओरेन्ज, जायन्ट डबल अफ्रिकन येलो, पुसा नारंगी गेंदा, पुसा बसन्ती गेंदा, फस्र्ट लेडी, टेक्सास, गोल्डन जुबली, फायर ग्लो, अलास्का, क्रेकर जेक इत्यादि।
2. फ्रेंच गेंदा : इस किस्म के पौधे झाडीनुमा तथा फैलने वाले होते है। मुख्यतया पौधें अफ्रिकन प्रजाति की अपेक्षा लम्बाई में छोटे होते है। पुष्प आकार में अपेक्षाकृत छोटे धारीदार एवं धब्बें युक्त अत्यंत आकर्षक होते है। पुष्पों का रंग लाल होता है जिसमें पीला एवं नारंगी सुनहरा रंग मिश्रित होता है। इस प्रजाति की मुख्य किस्में निम्नानुसार है – बोलेरो, बोनिटा, रस्टी रेड, बटर स्कॉच, पेटाइट गोल्ड, पेटाइट हारमनी, स्पन गोल्ड, येलो पिग्मी, लेमन ड्राप, स्पेनिश ब्रोकेड, ओरेन्ज फलेम, गोल्डी, जिप्सी, स्कारलेट, सोफिया इत्यादि।
3. मेक्सिकन गेंदा : लुलु, प्युमिला, गोल्डन जेम
खाद एवं उर्वरक : खेत तैयार करते समय 25 टन सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर देना चाहिए l व्यवसायिक खेती के लिए गेंदे की फसल को 120 किलोग्राम नत्रजन, 100 किलोग्राम फॉस्फोरस एवं 80 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता प्रति हेक्टेयर होती है l
नत्रजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा पौधे लगाते समय देना चाहिए शेष नत्रजन की मात्रा को दो भागो में बांटकर 30 एवं 50 दिन पर देना चाहिए l
बीज दर : 800 ग्राम से 1 किग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से बीज बुवाई के उपयोग में लिये जाते है।
बुवाई का समय : गेंदे की बुवाई वर्ष में तीन बार की जा सकती है। वर्षा ऋतु में पुष्प प्राप्त करने के लिए मध्य जून में बीजों की बुवाई की जाती है तथा रोपाई मध्य जुलाई तक करते है। सर्दी की ऋतु में पुष्प प्राप्त करने के लिये मध्य सितम्बर तक बीजों की बुवाई करने के पश्चात मध्य अक्टुंबर तक पौध की रोपाई की जाती है इसी प्रकार ग्रीष्मकालीन फसल प्राप्त करने के लिये जनवरी में बीजों की बुवाई की जाती है तथा फरवरी माह में पौध रोपण का कार्य किया जाता है।
पौध तैयार करना : गैंदे की पौध तैयार करने के लिए भूमि की सतह से 15 सेमी. उँची बीज क्यारी तैयार करे जिससे आवश्यकता से अधिक जल का निकास संभव हो सके। बीज शैया की चैड़ाई 1 मी. तथा लम्बाई आवश्यकतानुसार रखें। बीजो को क्यारी में 5 सेंटीमीटर की दुरी पर कतारों में 2 से 3 सेंटीमीटर की गहराई में बोया जाता है l इसके पश्चात् फव्वारे से पानी दिया जाता है l बीजो का अंकुरण 5 से 7 दिन में हो जाता है। बीज बूवाई से पूर्व बीजापचार आवश्यक रूप से करे जिससे पौध को छोटी अवस्था में होने वाले रोगो जैसे आर्द्रगलन, जड़ गलन से बचाव किया जा सके । बीजोपचार के लिए 0.2 प्रतिशत केप्टान अथवा बाविस्टिन का उपयोग करे।
पौध रोपण : जब पौधे की लम्बाई 15 सेमी. के लगभग हो जाये तथा 4 पतियाँ निकल आये तब पूर्व में तैयार क्यारियों में स्वस्थ पौध की रोपाई कर देनी चाहिए। रोपाई के पश्चात हल्की सिंचाई अवश्य करनी चाहिए।
सिंचाई : सामान्यतया सर्दी के मौसम में 12 से 15 दिवस के अंतराल पर तथा ग्रीष्म ऋतु में 5 से 7 दिवस के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए।
पिंचिंग (शीर्ष कर्तन) : पौध रोपाई के 35 से 40 दिन पश्चात पौधें की उपरी शीर्ष शाखा 3 से 5 सेमी तक की ऊँचाई हो; को हाथ से चुटक कर तोड देनी चाहिए जिससे पाश्र्व शाखाओं की संख्या में बढोतरी होती है और प्रति इकाई क्षेत्र में अधिक मात्रा में पुष्प प्राप्त किये जा सकते है।
खरपतवार नियंत्रण : खरपतवार मुख्य फसल के साथ नमी पोषण एवं रोशनी के लिये प्रतियोगी की जिम्मेदारी निभाते है जिससे पौधों की उपज एवं गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव पडता है साथ ही खरपतवार अनेक कीटों एवं व्याधियों की शरणस्थली होते है अत: 3 से 4 बार अच्छी निराई गुडाई करके खरपतवारों को खेत से उखाड लेवें। आवश्यकता पडने पर रासायनिक नियंत्रण द्वारा खरपतवार हटायें जा सकते है।
तुडाई : पूर्ण रूप से खिलें पुष्पों की सुबह जल्दी अथवा शाम के समय तुडाई करे जिससे पुष्प अधिक समय तक खिलें हुए ताजा एवं स्वस्थ रहे।
पैकिंग : ताजा तोडे गये पुष्पों को सेलोफिन स्ट्रिप में तथा बांस की टोकरियों में अच्छी तरह से पैक करके बिक्री स्थल पर भेजे।
उपज : अफ्रिकन गेंदे से औसतन 20 से 22 टन तथा फ्रेंच गेंदे से 10 से 12 टन प्रति हैक्टेयर उपज प्राप्त होती है।
मुख्य कीट एवं रोकथाम:-
1. रेड स्पाइडर माईट (लाल माईट) : माईट आठ पैर वाला जीव है जो कीटों से भिन्न होता है। इसके शिशु एवं वयस्क कोमल पत्तियों तथा नरम वृद्धि वाले भागों से रस चूस कर पौधें को नुकसान पहुचाते है। समय पर नियंत्रण नही करने पर आर्थिक स्तर पर हानि होत इसके नियंत्रण के लिये 0.2 प्रतिशत मेलाथियान का छिडकाव करें। इसके अलावा डाईकोफाल एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें l
2. माहू : ये कीडे हरे रंग के होते है तथा पत्तों की निचली सतह से रस चूसकर काफी मात्रा में हानि पहुँचाते है। ये कीडे विषाणु रोग भी फैलाते है। इसकी रोकथाम के लिये डाईमेथोएट 30 ई.सी. एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें। आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन के अंतराल पर अगला छिडकाव करे।
प्रमुख व्याधियाँ एवं रोकथाम:-
1. आर्द्र गलन रोग : यह बिमारी नर्सरी में पौध तैयार करते समय आती है। इस बिमारी के प्रकोप से रोगग्रस्त पौधे का तना गलने लगता है और शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। रोगग्रसित पौधों को जड सहित उखाड कर नष्ट कर देना चाहिये। इस रोग की रोकथाम करने के लिए 0.2 प्रतिशत कैप्टान अथवा बाविस्टिन के घोल से ड्रेंचिंग करें।
2. पत्ती धब्बा एवं झुलसा रोग : इस रोग से ग्रसित पौधें की पत्तियों के निचले हिस्सों पर भूरे रंग के धब्बें बनना प्रारम्भ होते है जो शीघ्र ही बढकर गहरे होने लगते है जिसके फलस्वरूप पौधों की वृद्धि में नकारात्मक प्रभाव पडने लगता है। ग्रसित पौधे झुलसे हुए प्रतीत होते है। इस रोग की रोकथाम के लिये मेन्कोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकार छिडकाव करें आवश्यकता होने पास 15 से 20 दिवस के अंतराल पर छिडकाव दोहराएँ।
3. पाउडरी मिलडयू रोग : इस रोग से ग्रसित पौधे की पत्तियों के उपरी एवं निचले भागों में तथा तने पर सफेद पाउडर जमा हो जाता है। ग्रसित पौधों पर चकत्ते दिखाई देने लगते है जिसके फलस्वरूप पौधे की वृद्धि रूक जाती है और पौधा नष्ट होने लगता है। रोगग्रसित पौधों को जड सहित उखाड कर नष्ट कर देना चाहिये। इस रोग की रोकथाम के लिए घुलनशील सल्फर 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकार छिडकाव करें l
शकुन्तला पालीवाल
सहायक कृषि अधिकारी,
जिला - उदयपुर (राजस्थान)