सरसों की खेती
जलवायु एवं भूमि : सरसों की फसल के लिए 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान होना चाहिए, सरसों की फसल के लिए दोमट भूमि सर्वोतम होती है, जिसमे की जल निकास उचित प्रबन्ध होना चाहिएI अत्यधिक अम्लीय एवं क्षारीय मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है। क्षारीय भूमि में उपयुक्त किस्म लेकर इसकी खेती की जा सकती है क्षारीय भूमि में तीसरे वर्ष जिप्सम 5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। जिप्सम की आवश्यकता मृदा पी.एच. मान के अनुसार भिन्न हो सकती है इसलिए मृदा परिक्षण अवश्य करवाएं।
भूमि की तैयारी : सरसों की खेती के लिए खेत की तैयारी सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करनी चाहिए, इसके पश्चात दो से तीन जुताईयाँ देशी हल या कल्टीवेटर से करना चाहिए, इसकी जुताई करने के पश्चात पाटा लगा कर खेत को समतल करना अति आवश्यक हैंI अंतिम जुताई के समय 1.5 प्रतिशत क्यूनाॅलफाॅस चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलाने से भूमिगत कीटो की रोकथाम होती है।
उन्नत किस्मे :
मध्य प्रदेश : जवाहर सरसों-2, जवाहर सरसों-3, राज विजय सरसों-2, कोरल-432, सी.एस.-56, नवगोल्ड (पीली सरसों), एन.आर.सी.एच.बी.-101
पूसा सरसों-21, पूसा सरसों-27, आर.जी.एन.-73, आशीर्वाद, माया आदि
राजस्थान : माया, वसुंधरा, अरावली, जगन्नाथ, लक्ष्मी, स्वर्ण ज्योति, आशीर्वाद, बायो 902, पूसा बोल्ड आदि
बीज उपचार : भरपूर पैदावार हेतु फसल का बीज जनित बीमारियों से बचाने के लिये बीजेपचार आवश्यक है। श्वेत किट्ट एवं डाउनी मिल्ड्यू से बचाव के लिए मेटालेक्जिल 35 SD 6 ग्राम एवं तना सड़न या तना गलन रोग से बचाव हेतु कार्बेन्डाजिम 3 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीज उपचार करें ।
बोनी का समय और बीज दर : उचित समय पर बोनी करने से उत्पादन अधिक होने के साथ साथ फसल पर रोग और कीटो का प्रकोप भी कम होता है। सिंचित सरसों की फसल 10 से 30 अक्टूबर तक करनी चाहिए। इसमे बीज की मात्रा 4.5 से 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखें। बुवाई कतारों में करें कतार से कतार 30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधा 15 सेंटीमीटर रखें। बीज को अधिक गहरा नहीं बोयें।
खाद एवं उर्वरक : भरपूर उत्पादन के लिए रासायनिक उर्वरको के साथ जैविक खाद का प्रयोग भी करना चाहिए। कम्पोस्ट खाद 10 टन प्रति हेक्टेयर अंतिम जुताई से पूर्व डालकर अच्छी तरह मिला दें। उर्वरक का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना अधिक उपयोगी रहता है। सामान्य रूप से 90 - 100 किलोग्राम नत्रजन, 40 - 50 किलोग्राम फॉस्फोरस और 25 - 30 किलोग्राम पोटाश और 40 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। सिंचित क्षेत्रो में अनुशंसित नत्रजन की आधी मात्रा एंव फॉस्फोरस, पोटाश और गंधक की संपूर्ण मात्रा बुआई के समय खेत में अच्छी तरह मिला दें तथा नत्रजन की शेष बची आधी मात्रा पहली सिंचाई के बाद खेत में खडी फसल छिटक कर देवे। अलग अलग राज्यों में अलग अलग सिफारिश की गयी है। इसलिए मिटटी परिक्षण आधार पर उर्वरक उपयोग करें।
सिंचाई : सरसो की बोनी बिना पलेवा दिये की गई है तो पहली सिंचाई बुआई के 30-35 दिन पर करे। इसके बाद 60-70 दिन की अवस्था पर एक और सिंचाई मिले तो 90-100 दिन पर करनी चाहिए। जिस समय फली का विकास या फली में दाना भर रहा हो सिंचाई अवश्य करें।
खरपतवार नियंत्रण एवं निंदाई गुड़ाई : बुवाई के बाद और उगने से पूर्व पेंडीमेथालिन 30 % 3.3 लीटर दवा 500 से 700 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें और बुवाई के 20 से 25 दिन पर एक निराई गुड़ाई कर खरपतवार निकालें ।
रोग नियंत्रण :
1. श्वेत किट्ट : पट्टी पर सफ़ेद फफोले हो जाते है और पुष्पक्रम विकृत हो जाता है। नियंत्रण के लिए समय पर बुवाई करें और मैन्कोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर 45 और 55 दिन पर छिड़काव करें।
2. झुलसा : नियंत्रण के लिए समय पर बुवाई करें और मैन्कोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर 45, 55 और 65 दिन पर छिड़काव करें।
3. सरसों का तना सड़न : बीज उपचार करें, फसल अधिक घनी नहीं लगाएं, अधिक नत्रजन का प्रयोग नहीं करें। फूल वाली अवस्था पर पत्तियों और तने पर कार्बेन्डाजिम 2 लीटर पानी के दो छिड़काव 10 दिन के अंतराल पर करें।
कीट नियंत्रण :
1. आरा मख्खी : 10 - 15 दिन की अवस्था पर मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर भुरकाव करें।
2. पेंटेड बग : 10 - 15 दिन की अवस्था पर मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर भुरकाव करें। ज्यादा प्रकोप होने पर मेलाथियान 50 ई सी 1 मिलीलीटर प्रति लीटर का छिड़काव करें।
3. माहू : डाईमिथोएट 30 ई सी एक 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
कटाई एवं गहाई : जब पत्तिया झड़ने लगे और फलिया पीली पड़ने लगे कटाई कर लेनी चाहिए। खलिहान में सुखा कर गहाई करें।