सोंफ की खेती
जलवायु एवं भूमि : इसकी खेती रबी में अच्छी तरह से की जाती है, फसल पकते समय शुष्क जलवायु की आवश्यकता पड़ती हैI बीज बनते समय अधिक ठंडक की आवश्यकता नहीं पड़ती हैI सौंफ की खेती बलुई भूमि को छोड़कर हर प्रकार की भूमि में की जा सकती है, लेकिन जल निकास का उचित प्रबंध होना अति आवश्यक है।
उन्नत किस्मे : सी.ओ.1, गुजरात सौंफ 1 और 2, राजस्थान सौंफ 101 और 125, अजमेर सौंफ - 1
खेत की तैयारी : अच्छे उत्पादन के लिए भूमि को भलि भांति तैयार करना आवश्यक है। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल के तथा बाद की 2-3 जुताईयां कल्टीवेटर से की जानी चाहिए । इसके पश्चात पाटा लगाकर मिट्टी को बारीक करके खेत को समतल कर लें। अच्छे अंकुरण के लिए बुवाई के समय खेत में उचित नमी होना जरुरी है। यदि दीमक की समस्या हो तो एण्डोसल्फाॅन 4 प्रतिशत या क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत या मिथाईल पेराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर के खेत में पाटा लगाने से पहले मिला देना चाहिए।
बुवाई का समय : सौंफ की खेती खरीफ व रबी दोनों मौसम में की जी सकती है। खरीफ की फसल के लिए जून-जुलाई के माह में नर्सरी में पौधे तैयार करने के लिए बोते है तथा 45-60 दिन के पश्चात् पौधों की रोपाई कर दी जाती है। जबकि रबी के मौसम में खेत में सीधी बुवाई करने के लिए अक्टूबर माह का पहला सप्ताह अधिक उपयुक्त पाया गया है।
बीज दर : खरीफ के मौसम में एक हैक्टेयर के लिए पौध तैयार करने हेतु 100 वर्ग मीटर क्षेत्र की आवश्यकता पड़ती है जिसके लिए नर्सरी में बीजाई हेतु 2.5 किलोग्राम बीज पर्याप्त है । रबी के मौसम में सीधी बुवाई करने के लिए 8-10 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर चाहिए।
बीजोपचार : फसल को बीज जनित रोगों के लिए बचाने के लिए 2.5 ग्राम बाविस्टीन प्रति किलोग्राम बीज से बुवाई से पूर्व बीज को उपचारित करके बोना चाहिए।
बुवाई रोपाई की विधि : रोपाई करने के लिए तैयार पौंधो को 45 से 60 सेंटीमीटर की दूरी पर बनाई गई लाईनों में पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर रखकर रोपाई करनी चाहिए। सौेफ के पौधे की रोपाई शाम के समय में करना बेहतर रहता है। अन्यथा तेज धुप मे पौधे मर सकते है। खेत में रोपाई के तुरन्त बाद सिंचाई करनी चाहिए। रबी की फसल के लिए सीधी बुवाई छिटंकवा या लाइनो में की जा सकती है। लाईनो में बुवाई करना अधिक सुविधाजनक होता है। इस विधि में लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर और पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।
खाद एंव उर्वरक : खाद एंव उर्वरक की मात्रा खेत की मिटटी का परीक्षण करवा कर ही देनी चाहिए। सौंफ की अच्छी पैदावार के लिए बुवाई से 3 सप्ताह पूर्व 15 टन गोबर का खाद या कम्पोस्ट डालनी चाहिए। इसके अतिरिक्त सामान्य उर्वरता वाली भूमि के लिए प्रति हैक्टयर 90 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस तथा 30 किलोग्राम पोटाश तत्वों की जरुरत पड़ती है। नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा तथा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा खेत में बुवाई से पूर्व देनी चाहिए। नाइट्रोजन की शेष मात्रा दो बराबर भागों में बाॅट कर 30 तथा 60 दिन के अन्तर पर खड़ी फसल में डालनी चाहिए। नाइट्रोजन उर्वरक के बुरकाव के समय ध्यान रखें कि खेत में पर्याप्त नमी हो। यदि प्रारम्भिक अवस्था में सौंफ के पौधे कमजोर हो तथा नाइट्रोजन की कमी के लक्षण दिखाई दे तो बुवाई के तीन सप्ताह पश्चात् यूरिया का 1 प्रतिशत घोल का छिड़काव किया जा सकता है।
सिंचाई : सौंफ की फसल अवधि लम्बी होने के कारण अधिक सिंचाइयों की जरुरत पड़ती है। रोपाई की गई फसल मे तुरन्त पानी लगाना चाहिए। इसी प्रकार सीधी बोई गई फसल में यदि मिटटी में नमी की कमी हो तो हल्का पानी बुवाई के तुरन्त बाद लगाया जा सकता है। मौसम व मिटटी की किस्म तथा फसल की अवस्था के आधार पर सिंचाई 10-20 दिन के अंतराल पर की जा सकती हे। परन्तु फूल आने व बीज बनने पर फसल को पानी की कमी न होने दें।
निराई गुड़ाई एंव खरपतवार नियन्त्रण : सौंफ की अच्छी फसल लेने तथा खेत को खरपतवार से मुक्त रखने के लिए तीन से चार निराई-गुडाई की जरुरत पडती है। लगभग हर 30 दिन के अन्तर पर निराई गुडाई की जानी चाहिए। पहली निराई-गुडाई के समय फालतू पौधो को निकालें। रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडीमेथालिन 30 ई सी 3.3 लीटर प्रति हैक्टयर बुवाई बाद और खरपतवार जमाव से पूर्व 500-600 लीटर पानी मे घोल कर छिड़काव करें। छिड़काव के समय मिटटी मे नमी का होना आवश्यक है।
पाले से बचाव : पाले से बचाने के लिए सिंचाई करें या धुआं करें।
कीट एंव रोग प्रबंधन :
1. माहू : डाइमेथोएट 30 ई.सी. एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव सांयकाल में करें।
2. सीड मिज : इसका प्रकोप फूल खिलने के समय होता है। इसके लिए क्यूनलफास 25 ई.सी. 2 मिलीलीटर प्रतिलीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव सांयकाल में करें।
3. झुलसा रोग : मैन्कोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 10-15 दिन के अन्तराल पर दोबारा भी आवश्यक होने पर किया जा सकता है।
4. पाउडरी मिल्डयू : गंधक का चूर्ण 20-25किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर के पौधो पर भुरकाव करना चाहिए। हेक्साकोनाज़ोल 5 ई सी 1 मिलीलीटर प्रति लीटर का घोल बनाकर छिड़काव कर सकते है।
5. जड गलन रोग : केप्टान 2 ग्राम प्रति लीटर के घोल से ड्रेन्चिंग करें।
कटाई व उपज : सौंफ की फसल लगभग 170 दिन में तैंयार होती है। सौंफ की फसल एक साथ तैयार न होने के कारण झण्डों (अम्बल) की तुड़ाई से दो से तीन बार में करते हैं। बीज की बाजारी गुणवत्ता के अनुसार जब झण्डों मे बीज हरे परन्तु पूरी तरह से विकसित हो तभी तुड़ाई की जानी चाहिए । सुखाने के पश्चात् डण्डों से पीटकर बीज अलग कर लेते हैं । एक हैक्टयर से औसतन 15-20 क्विंटल की उपज प्राप्त की जा सकती हैं ।