मेथी की उन्नत खेती
जलवायु : मेथी ठण्डे मौसम की फसल है, उचित बढ़वार व उपज के लिए मध्यम ठण्डी जलवायु की आवश्यकता पड़ती है। यह फसल कुछ सीमा तक पाला भी सहन कर लेती है। अधिक नमी व बादलों की अवस्था मे पाउडरी मिल्ड्यू रोग तथा चेपा का प्रकोप होने की संभावना बढ़ जाती है। अधिक व लगातार वर्षा वाले क्षेत्र मेथी उगाने के लिए उपयुक्त नही हैं ।
भूमि : मेथी को अच्छे जल निकास तथा जीवाश्म वाली सभी प्रकार की मिटटी में उगाया जा सकता है। दोमट व बलुई दोमट भूमि फसल उत्पादन के लिए अधिक उपयुक्त पायी गई है। उचित जल निकास प्रबन्ध द्वारा इस फसल को भारी भूमि में भी उगाया जा सकता है। कम क्षारीय भूमियों में भी मेथी की खेती की जा सकती हैं ।
उन्नत किस्मे : राजस्थान मेथी - 1, राजस्थान मेथी - 305, कोयंबटूर - 1, कोयंबटूर - 2, राजेंद्र क्रांति, पूसा अर्ली बंचिंग, हिसार सोनाली, Rmt 143 आदि।
खेत की तैयारी : पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल से तथा बाद की 2-3 जुताईयां कल्टीवेटर से की जा सकती है । इसके पश्चात् पाटा लगाकर मिटटी को बारीक करके खेत को समतल करें। अच्छे अंकुरण के लिए बुवाई के समय खेत में उचित नमी होना जरुरी है। दीमक की समस्या हो तो क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत या मिथाईल पेराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हैक्टयर की दर से खेत मे पाटा लगाने से पहले मिला देना चाहिए ।
बुवाई का समय : मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर ।
बीजदर : सामान्य मेथी 20 किलोग्राम तथा कसूरी मेथी 10 किलोग्राम प्रति हैक्टयर ।
बीजोपचार : बीज को 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से कार्बेन्डाजिम या केप्टान फफूंदनाशी से उपचारित करना चाहिए। यदि मेथी की फसल नये खेत में लेनी हो तो राइजोबियम जीवाणु से बीज को उपचारित करके छाया में सुखाकर ही बोना चाहिए ।
बुवाई की विधि : मेथी की बुवाई छिटकवां विधि से या लाईनों में की जाती है। परन्तु लाईनों में बुवाई करना अधिक सुविधाजनक रहता है। इस विधि में निराई-गुडाई तथा कटाई करने में भी कठिनाई नही होती। लाईन से लाईन की दूरी 25-30 सेंटीमीटर रखें। छिटकवां विधि मे बीज को समतल क्यारियों में समान रूप से बिखेर कर उनको हाथ द्वारा या रेक द्वारा मिटटी में मिला दिया जाता है। भारी भूमि में पलेवा देकर खेत को तैयार करके बुवाई करनी चाहिए। कसूरी मेथी का बीज बहुत छोटा होता है इसलिए बीज पर अधिक मिट्टी नहीं आनी चाहिए वरना अंकुरण पर विपरीत असर पड़ेगा। एक सी बुवाई करने के लिए बीज के साथ सूखी रेत मिला लेना चाहिए ।
खाद व उर्वरक : खाद एंव उर्वरक की मात्रा खेत की मिटटी का परीक्षण करवा कर ही देना चाहिए। मेथी की अच्छी पैदावार के लिए बीजाई के लगभग 3 सप्ताह पहले 10 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद प्रति हेक्टेयर डालनी चाहिए। इसके अतिरिक्त सामान्य उर्वरता वाली भूमि के लिए प्रति हैक्टयर 25 किलोग्राम नाइट्रोजन, 25 - 30 किलोग्राम फास्फोरस तथा 20 - 30 किलोग्राम पोटाश की पूरी मात्रा खेत में बुवाई से पूर्व देनी चाहिए ।
सिंचाई : यदि बुवाई की प्रारम्भिक अवस्था में नमी की कमी हो तो एक हल्की सिंचाई बुवाई के तूरन्त बाद की जी सकती है बाकि पहली सिंचाई 4-6 अच्छी पतित्याॅ आने पर करें । मूख्यतः सर्दी के दिनों में दो सिंचाईयों का अन्तर 10-15 दिन तथा गर्मी में 5-7 दिन रखना चाहिए ।
निराई गुड़ाई और खरपतवार नियंत्रण : मेथी की अच्छी फसल लेने खेत को खरपतवार से मुक्त रखने के लिए दो से तीन निराई-गुडाई पहली बुवाई के 30 दिन तथा दूसरी 50-60 दिन पश्चात् अवश्य करें। इससे मिट्टी खुली बनी रहे तथा उसमें हवा का संचार अच्छा बना रहे। रासायनिक खरपतवार नियत्रंण के लिए पेंडीमेथालिन 30 ई सी 3.3 लीटर प्रति हैक्टयर 500-600 लीटर में घोल बनाकर बुवाई के बाद और उगने से पहले करें।
रोग एवं कीट नियंत्रण :
चेपा (मोयला), जैसिड, सफेद मक्खी, लीफ माइनर : इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 5 मिलीलीटर प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
छाछया (पाउडरी मिल्डयु) : गंधक का चूर्ण 20-25 किलोग्राम प्रति हैक्टयर की दर से पौधें पर भुरकाव करें।
जड गलना : गर्मी की गहरी जुताई करें, बीज प्रमाणित हो, बीज उपचारित करके बोयें।
मृदुरोमिल आसिता (डाउनी मिल्डयू) : मैन्कोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
कटाई : मेथी की बीज वाली फसल किस्म व स्थान के अनुसार लगभग 120 से 160 दिन में तैयार हो जाती है। मेथी की फलियां पीली पड़ने तथा नीचे के पत्ते गिरने पर कटाई दराती द्वारा पौधों को काटकर की जाती है। कटाई पश्चात् उचित आकार के बण्डल बनाकर 4-6 दिन तक सुखाना चाहिए। सुखाने के पश्चात् डंडे द्वारा पीटकर खलिहान में बीज को अगल कर लिया जाता है। इसके लिए थ्रेशर का भी प्रयोग किया जा सकता है ।
उपज : एक हैक्टयर से औसतन देसी मेथी मे 15-20 क्विंटल तथा कसूरी मेथी से 7-8 क्विंटल बीज की उपज प्राप्त कर सकते हैं ।