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गुलाब की खेती

द्वारा, दिनांक 19-08-2019 08:43 PM को 742

गुलाब की खेती

व्यावसायिक दृष्टि से देशी गुलाब एक महत्वपूर्ण पौधा है। इसमें आय का मुख्य स्त्रोत इत्र, गुलकंद, गुलाब जल और कटे फूल से संबधित उद्योग भी काफी फल-फूल रहे हैं। गुलाब की मुख्यतः चार सुगंधित प्रजातियां हैं जो कि तेल निर्माण के उद्देश्य से लगाई जाती हैं। ये प्रजातियां हैं - 1. रोजा सेन्टीफेालिया 2. रोजा मोसचांटा 3. रोजा बोरबोनियाना 4. रोजा डेमेसिना। इनमें से भारत में सबसे ज्यादा रोजा डेमेसिना लगाई जाती है। उदयपुर के हल्दीघाटी क्षेत्र में रोजा डेमेसिना तथा अजमेर क्षेत्र में बोरबोनियाना लगाया जाता है जबकि गंगानगर क्षेत्र में रोजा चाइनेनसिस लगाया जाता है।
जलवायु एवं भूमि - गुलाब के लिए बलुई दोमट से लेकर चिकनी दोमट भूमि, जिसका पी.एच. मान 6 से 8 हो उपयुक्त होती है। भूमि में जल निकास का उचित प्रबंध होना चाहिए। अधिक पुष्प उत्पादन के लिए प्रचुर मात्रा में धूप व आर्द्रता वाली जलवायु उपयुक्त होती है।
उन्नत किस्में - चैती गुलाब, नूरजहाॅं, ज्वाला, हिमरोज, पुष्कर लोकल तथा गंगानगरी रेड रोज।
प्रवर्धन - गुलाब की खेती के लिए एक वर्ष पुरानी टहनियों से 20-25 सेमी. लम्बे व 1-1.5 सेमी मोटे टुकडे कटाई-छंटाई के समय अक्टूबर-नवम्बर माह में तैयार करते हैं। हर एक कलम में 3-4 आंख का होना आवश्यक है। इन्हें तैयार नर्सरी के 20 × 5 मीटर क्षेत्रफल में उत्तर की ओर समकोण पर लगाया जाता है। इस तरह एक हैक्टर क्षेत्रफल के लिए 10,000 कलमें 5 मीटर लम्बी एवं 1 मीटर चौड़ी क्यारी में लगाई जाती हैं। कलमों में जड़ निकालने के लिए नर्सरी में लगाने से पूर्व आई बी ए (200 पीपीएम) नामक वृद्धि नियंत्रक से उपचारित  करें। इस दौरान नर्सरी की उचित देखभाल करनी चाहिए।
पौध रोपण - तैयार खेत में 50 × 50 × 50 सेमी. आकार के गड्ढे 1.0 मीटर लाइन से लाइन की एवं पौधे से पौधे की दूरी पर तैयार करें। प्रत्येक गड्ढे में 5 किलोग्राम गोबर की खाद, 150 ग्राम सुपर फाॅस्फेट, 50 ग्राम जिंक सल्फेट तथा 100 ग्राम म्यूरेट आॅफ पोटाश की मात्रा दें। पौधे लगाने का उपयुक्त समय अक्टूबर से दिसम्बर का होता है। रोपण के तुरन्त बाद सिंचाई करना अति आवश्यक है।
खाद एवं उर्वरक - पुष्प उत्पादन बढ़ाने के लिए 8-10 टन प्रति हैक्टर अच्छी सड़ी गोबर की खाद प्रति वर्ष देनी चाहिए। इसके उपरान्त 200 किलोग्राम नत्रजन प्रति हैक्टर के हिसाब से अक्टूबर तथा जनवरी में दो भागों में बांट कर दें। यदि सूक्ष्म तत्वों की आवश्यकता होने पर अवश्य देना चाहिए।जब कलियां बनना आरम्भ हो जाये हो इसमें यूरिया 25 ग्राम, 25 ग्राम अमोनियम सल्फेट, 20 ग्राम पोटेशियम सल्फेट के मिश्रण की 25 ग्राम मात्रा को 10 से 12 लीटर पानी में घोल कर 10 से 15 दिन के अंतराल पर 2-3 बार छिड़काव कर सकते हैं। इसमें सूक्ष्म तत्वों का भी प्रयोग किया जा सकता है। इसमें खासतौर पर मैग्नीज सल्फेट, चिलेटेड आइरन, बोरेक्स तथा जिंक सल्फेट अवश्य हों।
सिंचाई - साधारणतया पूरे वर्ष में 12 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है।चैती तथा गंगानगर रेड गुलाब में कटाई-छंटाई से जून माह के अंत तक हर 15 दिन में सिंचाई की जानी चाहिए।
कटाई-छंटाई - पौधें की कटाई-छंटाई रोपण के दो वर्ष बाद की जाती है। इसका उपयुक्त समय नवम्बर-दिसम्बर तक माना जाता है। भूमि से 50 सेमी ऊॅंचाई से पौधे को काटा जाता है। कटाई के 70-90 दिन बाद फूल आने शुरू हो जाते हैं।
निराई-गुड़ाई - कटाई-छंटाई के बाद दिसम्बर से फरबरी तक 2-3 बार निराई-गुड़ाई करने से पुष्प वाली शाखाएॅं अधिक निकलती हैं तथा पौधे उचित आकार लेते हैं। इससे कलिका अधिक स्चस्थ बनती हैं। इसके अतिरिक्त गुलाब की फसल को खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए। वर्ष में 4-5 बार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए।
काइनेटिन का प्रयोग - काइनेटिन नामक वृद्धि नियंत्रक का 20 मिली. प्रति लीटर पानी की दर से कटाई-छंटाई के 30 दिन बाद पहला छिड़काव, कली बनते समय दूसरा छिड़काव तथा तीसरा छिड़काव दूसरे छिड़काव के 15 दिन बाद करना लाभप्रद रहता है। इससे फूलों के उत्पादन के साथ-साथ कली को फूलने से पहले गिरने से भी रोका जा सकता है।
उपज - उचित ढंग से गुलाब की खेती करने पर 2-3 टन प्रति हैक्टर पुष्प उत्पादन होता है। चैती गुलाब में तेल की मात्रा 0.03 से 0.045 प्रतिशत तक होती है। एक बार पौधा लगाने के बाद इसकी उपज 10-12 साल तक मिलती है।
कीट प्रबंधन :
स्केल कीट - ये कीट टहनियों एवं तने पर भारी मात्रा में चिपके हुए रहते हैं। कीट ग्रसित पौधों पर अवयस्क शल्क पाये जाते हैं। इस कीट के प्रकोप से पौधा कमजोर पड़ जाता है और अधिक प्रकोप की अवस्था में सूख जाता है।नियंत्रण हेतु पौधों का कृन्तन कर रोग ग्रस्त भाग को इकट्ठा करके नष्ट कर देवें। डाइजिनाॅन या मिथाइल डिमेटाॅन 1  मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

[caption id="attachment_158" align="aligncenter" width="237"]A स्केल कीट[/caption]

मोयला - यह कीट पत्तियों, कली व कोमल टहनियों का रस चूसते हैं, फलस्वरूप पौधों की बढ़वार रूक जाती है और पुष्प की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इस कीट का प्रकोप नवम्बर से अप्रैल तक अधिक रहता है।नियंत्रण हेतु मैलाथियान 50 ई.सी. अथवा डाइमिथोएट 30 ई.सी. एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

[caption id="attachment_159" align="aligncenter" width="232"]A मोयला [/caption]

पर्णजीवी - ये कीट फूलों की पंखुड़ियों से रस चूसते हैं जिससे पंखुड़ियाॅं मुड़ जाती हैं। पुष्प का आकार बिगड़ जाता है। पत्तियों पर सफेद धब्बे दिखाई देते हैं तथा पौधा कमजोर पड़ जाता है। नियंत्रण हेतु मैलाथियान 50 ई.सी. अथवा डाइमिथोएट 30 ई.सी. एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
तना छेदक मक्खी - ये गहरे नीले रंग की छोटी मक्खी कटे हुए सिरों में छेद करके अंदर घुस जाती है तथा पूरी टहनी सूख जाती है। नियंत्रण हेतु मैलाथियान 50 ई.सी. अथवा डाइमिथोएट 30 ई.सी. एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

[caption id="attachment_161" align="alignnone" width="1018"]Ajpg तना छेदक मक्खी[/caption]

थ्रिप्स - ये कीट पत्तियों तथा पंखुड़ियों का रस चूस लेता है इसके कारण पत्तियाॅं मुड़ जाती हैं तथा इसमें धारियाॅं पड़ जाती हैं। नियंत्रण हेतु मिथाइल आॅक्सी डेमेटान या डाइमिथोएट या ऐसीफेट या इमिडाक्लोरपिड पाॅंच मिलीलीटर प्रति दस लीटर पानी की दर से 2 या 3 बार 15 दिन के अंतराल से छिड़काव करें।

[caption id="attachment_160" align="alignnone" width="1346"]A थ्रिप्स[/caption]

स्पाइडर माइट - ये कीट पूर्ण विकसित पत्तियों के नीचे की ओर सफेद रेशमी जाले में रहता है। गर्म तथा सूखा वातावरण इसके लिए सबसे उपयुक्त है। नियंत्रण हेतु क्षतिग्रस्त हिस्सों को काटकर जला दें तथा पौधे पर माईटेक या इथियान 5 मिली. प्रति दस लीटर पानी के घोल का 2 से 3 बार 15 दिन के अंतराल से छिड़काव करें।

[caption id="attachment_162" align="aligncenter" width="206"]A स्पाइडर माइट[/caption]

रोग प्रबंधन -
छाछ्या - इस रोग के आक्रमण से पत्तियों एवं कलियों पर सफेद चूर्ण के धब्बे दिखाई देते हैं या अधिक रोगग्रस्त पत्तियाॅं पीली पड़कर झड़ जाती हैं। नियंत्रण हेतु कैराथेन एल.सी. एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल का 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।

A
एन्थ्रैक्नोज - इस रोग के प्रकोप से पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं और रोगग्रसित भाग मुरझा कर सूखने लगते हैं। नियंत्रण हेतु मैंकोजैब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें।

A
डाई बैक - काट-छांट के पश्चात प्रायः ये रोग टहनियों मेें लग जाता है। टहनियाॅं ऊपर से नीचे की ओर सूखने लग जाती हैं तथा पूरा पौधा सूख कर मर सकता है। नियंत्रण हेतु सूखे भाग को काट कर हटा दें तथा इसमें बोर्डो मिश्रण या गुलाब पेंट (काॅपर कार्बाेनेट + रेड लेड  +  अलसी का तेल 4 : 4 : 5 के अनुपात में कटी टहनियों के सिरे पर लगा दें।

A

काले धब्बे - इस रोग के प्रकोप से पत्तियों पर गहरे काले रंग के धब्बे बन जाते हैं और रोगग्रसित भाग मुरझा कर सूखने लगते हैं। नियंत्रण हेतु मैंकोजैब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें।

A

रस्ट - रस्ट शुरू में ऊपर की और एक पत्ती की सतह पर छोटे काले धब्बे के रूप में दिखाई देता है। स्पॉट विस्तार के रूप में वे जंग के रंग का और अंत में काले हो जाते हैं। रस्ट के पश्चुल पट्टी के दोनों सतह पर होते है अंत में पत्तियां पीली होकर गिर जाती है। नियंत्रण के लिए प्रोपिकोनाज़ोल 25 EC 1 मिलीलीटर प्रति लीटर का छिड़काव करें।

A

 

डाॅ. राम राज मीना, विषय विशेषज्ञ, उद्यान
डाॅ. किशन जीनगर, कार्यक्रम समन्वयक
डाॅ. भरतलाल मीना, विशेषज्ञ पौध संरक्षण
कृषि विज्ञान केन्द्र, झालावाड़, 326001 (राज.)

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