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शलजम की खेती

द्वारा, दिनांक 21-08-2019 08:58 PM को 128

शलजम की खेती

जलवायु एवं भूमि : शलजम की खेती शीतोष्ण एवं समशीतोष्ण दोनों ही तरह की जलवायु में की जा सकती है, इसकी खेती 10 से 15 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर सफलता पूर्वक की जा सकती है। इसकी खेती सभी प्रकार की भूमि की जा सकती है, लेकिन दोमट भूमि सबसे अधिक उत्तम होती है, इसकी खेती में उचित जल निकास होना अतिआवश्यक हैI

उन्नत किस्मे : पूसा कंचन, पूसा स्वाति तथा पंजाब सफ़ेद, पूसा स्वर्णिमा, स्नोबॉल आदि I

खेत की तैयारी : खेत की तैयारी के लिए पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल से करनी चाहिए, इसके बाद दो तीन जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करते हुए पाटा लगाकर समतल बनाते हुए खेत को भुरभुरा बना लेना चाहिए, खेत की तैयारी करते हुए आखिरी जुताई में 10 से 15 टन सड़ी गोबर की खाद अच्छी तरह से मिला देना चाहिएI
बीज दर तथा बीज उपचार : शलजम की बुवाई में 3 से 4 किलो ग्राम बीज एक हैक्टेयर के लिए पर्याप्त होता है।  बीज उपचार बैबिस्टीन या कैप्टान 2.5 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से करना चाहिएI

बुवाई का समय और विधि :  मैदानी क्षेत्रो में सितम्बर से अक्टूबर तक बुवाई की जाती है, ज्यादातर लाइनो में बुवाई की जाती है, लाइन से लाइन की दूरी 30 से 45 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर रखी जाती है, 1.5 से 2 सेंटीमीटर की गहराई पर बुवाई करते है I

खाद एवं उर्वरक : खेत की तैयारी के समय आखिरी जुताई में 10 से 15 टन सड़ी गोबर की खाद अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए। इसके साथ 80 से 100 किलो ग्राम नाइट्रोजन 50 किलो ग्राम फास्फोरस एवं 50 किलो ग्राम पोटाश तत्व के रूप में देना चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस  एवं पोटाश की पूरी मात्रा खेत तैयारी के समय देना चाहिए। शेष नाइट्रोजन की आधी मात्रा दो बार में टापड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए।

सिंचाई : शलजम की बुवाई के 7 से 10 दिन बाद पहली सिचाई करते है तथा आवश्यकतानुसार सिचाई 10 से 12 दिन के अन्तराल पर सिचाई करते रहना चाहिएI

निराई गुड़ाई तथा खरपतवारो नियंत्रण : शलजम में 2 से 3 निराई एवं गुड़ाई कि आवश्यकता पड़ती है, निराई गुड़ाई के समय पर ही अनावशयक पौधे निकाल कर दुरी सही करें।  बुवाई के 25 से 30 दिन बाद मिटटी चढ़ाते है, उसी समय टाप ड्रेसिंग नत्रजन की करते है। यदि खेत में अधिक खरपतवार उगते है तो  बुवाई के 1 से 2 दिन के अन्दर पेंडिमिथलीन 30 प्रतिशत की 3.3  लीटर मात्रा को 700 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए I

रोग प्रबंधन : शलजम में व्हाइट रस्ट, सरकोस्पोरा धब्बे, पीला रोग, आल्टरनेरिया पर्ण अंगमारी रोग लगते है  इन्हे रोकने के लिए फफूंद नाशक दवा डाइथेन एम- 45 का 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी का छिड़काव करना चाहिए।

कीट प्रबंधन :  माहू, मूँगी, बालदार कीडा, सेमी लूपर, आरामख्खी, डाइमंड बैकमोथ कीट लगते है।  रोकथाम हेतु मैलाथियान 0.05 प्रतिशत घोल का उपयोग करें या कृषि वैज्ञानिक से सलाह लेकर छिड़काव करें।

खुदाई : जब जड़े खाने लायक आकर की (5 से 7 सेंटीमीटर) हो तब इसकी खुदाई करनी चाहिए, 10 सेंटी मीटर से अधिक बडी जड़े हो जाने पर इनमे तीखापन आ जाता है।  खुदाई से पहले हल्की सिचाई कर देना चाहिए जिससे की खुदाई में किसी प्रकार का नुकसान नहीं होगा।

उपज  : शलजम की फसल से औसतन उपज 200 से 250 क्विंटल प्रति हैक्टेयर प्राप्त होती हैI

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