कलोंजी की सफल खेती
कलोंजी को देश के विभिन्न भागों में सफलतापूर्वक उगाया जाता है। इसे मुख्य तौर पर इसके बीजों के लिए उगाते हैं जिनका प्रयोग मसाले के रूप में अचार में, बीजों तथा उनसे तैयार तेल का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं में तथा सुगन्ध उद्योग में किया जाता हैं ।
जलवायु : कलोंजी एक ठण्डे जलवायु की फसल है। इसे मुख्यतः उत्तरी भारत मे सर्दी के मौसम में रबी में उगाया जाता है। इसकी बुवाई व बढ़वार के समय हल्की ठंडी तथा पकने के समय हल्की गरम जलवायु की जरुरत होती है।
भूमि : कलोंजी को जीवांश युक्त अच्छे जल निकास वाली सभी प्रकार की मिटटी में उगाया जा सकता है। दोमट व बलुई भूमि कलोंजी के फसल उत्पादन के लिए अधिक उपयुक्त है। उचित जल निकास प्रबन्ध द्वारा इस फसल को भारी भूमि में भी उगाया जा सकता है ।
उन्नत किस्म : कलोंजी के बोने में अधिकतर स्थानीय किस्मो का ही प्रयोग किया जाता है। एन.आर.सी.एस.एस. ए.एन.-1 एक उन्नत किस्म है।
खेत की तैयारी : भरपूर उत्पादन के लिए भूमि को अच्छा तैयार करना जरुरी है । इसके लिए पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल से तथा बाद की 2-3 जुताईयां कल्टीवेटर से करके खेत को भुरभुरा बनायें इसके पश्चात् पाटा लगाकर मिटटी को बारीक करके खेत को समतल करें। अच्छे अंकुरण के लिए बुवाई से पूर्व खेत में उचित नमी होना आवश्यक है इसलिए खेत को पलेवा देकर बुवाई करना अच्छा रहता है।
बुवाई का समय : अक्टूबर आरम्भ से मध्य अक्टूबर तक लेकिन अक्टूबर अंत तक भी बोया जा सकता है ।
बीज दर : 7-8 कि.ग्रा. प्रति हैक्टयर ।
बीजोपचार : बीज जनित रोग जड़ गलन की रोकथाम हेतु बीज को 2.5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. की दर से केप्टान या थायरम फफूॅदनाशी से उपचारित करना चाहिए ।
बुवाई की विधि : कलोंजी की बुवाई छिटकवां विधि से या लाईनों में की जाती है परन्तु लाईनों में बुवाई करना अधिक उपयुक्त है। अतः लाईन की दूरी 30 सेंटीमीटर रखकर बुवाई करें। अंकुरण के पश्चात् 15 से 20 दिन पश्चात पौधों की दूरी 15 सेंटीमीटर कर देवें। बीज को 1.5 सेंटीमीटर से अधिक गहरा न बोयें अन्यथा बीज के जमाव पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। बुवाई के समय यदि खेत में नमी कम हो तो हल्की सिंचाई बुवाई के उपरान्त की जा सकती है। छिटकंवा विधि से बुवाई करने पर बीज को समतल क्यारियों मे समान रूप से बिखेर कर मिट्टी में मिला दिया जाता है। भारी भूमि मे पलेवा देकर खेत को तैयार करके बुवाई करनी चाहिए ।
खाद एंव उर्वरक : खाद एंव उर्वरक की मात्रा खेत की मिटटी का परीक्षण करवा कर ही देनी चाहिए। कलोंजी की अच्छी पैदावार के लिए 10 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद डालनी चाहिए। इसके अतिरिक्त सामान्य उर्वरता वाली भूमि के लिए प्रति हैक्टेयर 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फस्फोरस तथा 15 किलोग्राम पोटाश तत्वों की जरुरत पड़ती हैं। नाइट्रोजन की मात्रा दो बराबर भागो में बुवाई के 30 तथा 60 दिन के अन्तर पर खड़ी फसल में सिंचाई के साथ डालना चाहिए।
निराई गुड़ाई : कलोंजी की फसल लेने तथा खेत की खरपतवार से मुक्त रखने के लिए दो से तीन निराई-गुड़ाई की जरुरत पड़ती हैं लगभग हर 30 दिन के अन्तर पर निराई-गुड़ाई की जानी चाहिए । पहली निराई गुड़ाई के समय फालतू पौधे को निकाल देवें।
सिंचाई : आवश्यकता अनुसार सिंचाई करें।
फसल सुरक्षा : मुख्य कीट और रोग निम्न है।
कटवा इल्ली : यह इल्ली पौधो को जमीन के पास से काट कर नुकसान पहुंचाती हैं । इसकी रोकथाम के लिए क्लोरोपाइरीफास 20 ई सी दवा की 2.5 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी के हिसाब से मिलाकर छिड़काव करें।
जड गलन : कलोंजी की मुख्य समस्या है इसके लिए रोग रहित बीज प्रयोग करें, बीज को उपचारित करके बोयें।
फसल कटाई : कलोंजी की फसल लगभग 120-140 दिन मे पक कर तैयार हो जाती है । कटाई के लिए तैयार फसल से पूरे पौधे को उखाड़ लिया जाता है ओैर खलिहान में 5-6 दिन तक के लिए सुखाने के लिए रखते हैं। सुखाने के पश्चात् डंडे से पीटकर बीजो को अलग कर लिया जाता हैं ।
उपज : एक हैक्टेयर से औसतन 8-10 क्विंटल की उपज प्राप्त की जा सकती हैं ।