धनिये की खेती
जलवायु : धनिये की खेती के लिए शुष्क व ठंडा मौसम अनुकूल होता है । बीजों के अंकुरण के लिय 25° से 26° सेंटीग्रेड तापमान अच्छा होता है । धनिया शीतोष्ण जलवायु की फसल होने के कारण फूल एवं दाना बनने की अवस्था पर पाला रहित मौसम की आवश्यकता होती है । धनिया को पाले से बहुत नुकसान होता है ।
भूमि का चुनाव एवं तैयारी : सिंचित फसल के लिए जल निकास वाली अच्छी दोमट भूमि उपयुक्त होती है और असिंचित फसल के लिए काली भारी भूमि अच्छी होती है । धनिया क्षारीय एवं लवणीय भूमि को सहन नही करता है । मिट्टी का पी.एच. 6.5 से 7.5 होना चाहिए । सिंचित क्षेत्र में अगर जुताई के समय भूमि में पर्याप्त जल न हो तो भूमि की तैयारी पलेवा देकर करनी चाहिए ।
उन्नत किस्मे : RCr 41, हिसार सुगंध, RCr 435, RCr 436, RCr 446, GC 2, RCr 684 आदि
बोनी का समय : धनिया बोने का सबसे उपयुक्त समय 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर है । दानों के लिए धनिया की बुआई का उपयुक्त समय नवम्बर का प्रथम पखवाड़ा हैं । हरे पत्तों की फसल के लिए अक्टूबर से दिसम्बर का समय बिजाई के लिए उपयुक्त है ।
बीज दर: सिंचित अवस्था में 15-20 कि.ग्रा./हे. बीज तथा असिंचित में 25-30 कि.ग्रा./हे. बीज की आवश्यकता होती है ।
बीजोपचार : भूमि एवं बीज जनित रोगो से बचाव के लिए कार्बेन्डाजिम + थाइरम (2 :1) 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें ।
खाद एवं उर्वरक : असिंचित फसल के लिए गोबर खाद 20 टन के साथ 40 किलोग्राम नत्रजन, 30 किलोग्राम फॉस्फोरस, 20 किलोग्राम पोटाश तथा 20 किलोग्राम सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। सिंचित फसल में 60 किलोग्राम नत्रजन, 40 किलोग्राम फॉस्फोरस, 20 किलोग्राम पोटाश तथा 20 किलोग्राम सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। असिंचित अवस्था में उर्वरको की संपूर्ण मात्रा आधार खाद के रूप में देना चाहिए। सिंचित अवस्था में नाइट्रोजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस, पोटाश एवंसल्फर की पूरी मात्रा अंतिम जुताई के समय देना चाहिए । नाइट्रोजन की शेष आधी मात्रा खड़ी फसल में प्रथम सिंचाई के बाद देना चाहिए ।
बोने की विधि : बोने के पहले धनिया बीज को सावधानीपूर्वक हल्का रगड़कर बीजो को दो भागो में तोड़ कर दाल बनावें । धनिया की बोनी सीड ड्रील से कतारों में करें । कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी. रखें । भारी भूमि या अधिक उर्वरा भूमि में कतारों की दूरी 40 से.मी. रखना चाहिए । धनिया की बुवाई पंक्तियों मे करना अधिक लाभदायक है । कूड में बीज की गहराई 2-4 से.मी. तक होना चाहिए । बीज को अधिक गहराई पर बोने से अंकुरण कम प्राप्त होता है ।
सिंचाई : पहली सिंचाई 30-35 दिन बाद (पत्ती बनने की अवस्था), दूसरी सिंचाई 50-60 दिन बाद (शाखा निकलने की अवस्था), तीसरी सिंचाई 70-80 दिन बाद (फूल आने की अवस्था) तथा चौथी सिंचाई 90-100 दिन बाद (बीज बनने की अवस्था ) करना चाहिऐ। हल्की जमीन में पांचवी सिंचाई 105-110 दिन बाद (दाना पकने की अवस्था) करना लाभदायक है ।
खरपतवार नियंत्रण : धनिया में फसल-खरपतवार प्रतिस्पर्धा की क्रांतिक अवधि 35-40 दिन है । इस अवधि में खरपतवारों की निंदाई नहीं करते है तो धनिया की उपज 40-45 प्रतिशत कम हो जाती है । धनिया में खरपतवरों की अधिकता या सघनता व आवश्यकता पड़ने पर निम्न में से किसी एक खरपतवानाशी दवा का प्रयोग कर सकते है। बोनी से 48 घंटे तक पेंडीमेथालिन 30 % 3.3 लीटर प्रति हेक्टेयर या बुवाई के 15 से 20 दिन बाद क्विजोलोफाॅप इथाईल 100 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर।
कीट प्रबंधन :
माहू /चेपा (एफिड): इस रसचूसक कीट का प्रकोप धनिये में बहुत होता है । इस कीटे के हल्के हरें रंग वाले शिशु व प्रौढ़ दोनो ही पौधे के तनों, फूलों एवं बनते हुए बीजों जैसे कोमल अंगो का रस चूसते हैं। चेपा की रोकथाम के लिए निम्न कीटनाशी दवाईयों का प्रयोग करें । आक्सी डेमेटान मिथाइल 25 ई सी 1.5 मिलीलीटर या डायमेथियोट 30 ई सी 2 मिलीलीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 0.3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
रोग प्रबंधन :
उकठा : उकठा रोग फ्यूजेरियम आक्सीस्पोरम एवं फ्यूजेरियम कोरिएनड्री कवक के द्वारा फैलता है । इस रोग के कारण पौधे मुरझा जाते है और पौधे सूख जाते है । इस रोग का प्रबंधन निम्नानुसार करें ।
1. ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें एवं उचित फसल चक्र अपनाएं ।
2. बीज की बुवाई नवम्बर के प्रथम से द्वितीय सप्ताह में करें ।
3. बुवाई के पूर्व बीजों को कार्बेन्डिजम 50 डब्ल्यू पी 3 ग्राम प्रति किलोग्राम या ट्रायकोडरमा विरिडी 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करें ।
4. उकठा के लक्षण दिखाई देने पर कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 2.0 ग्राम या हेक्जाकोनोजाॅल 5 ईसी 2 मिलीलीटर या मेटालेक्जिल 35 प्रतिशत 1 ग्राम प्रति लीटर घोल का छिड़काव कर जमीन को तर करें ।
स्टेम गाल (लोंगिया) : यह रोग प्रोटामाइसेस मेक्रोस्पोरस कवक के द्वारा फैलता है । रोग के कारण फसल को अत्यधिक क्षति होती है । पौधो के तनों पर सूजन हो जाती है । तनों, फूल वाली टहनियों एवं अन्य भागों पर गांठें बन जाती है । बीजों में भी विकृतिया आ जाती है। रोग के लक्षण दिखाई देने पर स्ट्रेप्टोमाइसिन 0.4 ग्राम प्रति लीटर का 20 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें ।
चूर्णिल आसिता या भभूतिया : यह रोग इरीसिफी पाॅलीगाॅन कवक के द्वारा फैलता है। रोग की प्रारंभिक अवस्था में पत्तियों एवं शाखाओं पर सफेद चूर्ण की परत जम जाती है। अधिक प्रभावित पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती है । नियंत्रण के लिए हेक्जाकोनोजाॅल 5 ई सी 2.0 मिलीलीटर प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर 10 से 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें ।
कटाई : फसल की कटाई उपयुक्त समय पर करनी चाहिए ।दाना दबाने पर मध्यम कठोर तथा पत्तिया पीली पड़ने लगे, धनिया डोड़ी का रंग हरे से चमकीला
भूरा/पीला होने पर तथा दानों में 18 प्रतिशत नमी रहने पर कटाई करना चाहिए । कटाई में देरी करने से दानों का रंग खराब हो जाता है । जिससे बाजार में उचित कीमत नही मिल पाती है । अच्छी गुणवत्तायुक्त उपज प्राप्त करने के लिए 50 प्रतिशत धनिया डोड़ी का हरा से चमकीला भूरा कलर होने पर कटाई करना चाहिए ।
गहाई : धनिया का हरा-पीला कलर एवं सुगंध प्राप्त करने के लिए धनिया की कटाई के बाद छोटे-छोटे बण्डल बनाकर 1-2 दिन तक खेत में खुली धूप में सूखाना चाहिए । बण्डलों को 3-4 दिन तक छाया में सुखाएं या खेत मे सूखाने के लिए सीधे खड़े बण्डलों के ऊपर उल्टे बण्डल रख कर ढेरी बनावें । ढेरी को 4-5 दिन तक खेत में सूखने दे । सीधे-उल्टे बण्डलों की ढेरी बनाकर सूखाने से धनिया बीजों पर तेज धूप नही लगने के कारण वाष्पशील तेल उड़ता नही है ।
उपज : सिंचित फसल की वैज्ञाानिक तकनीकि से खेती करने पर 15-18 क्विंटल बीज एवं 100-125 क्विंटल पत्तियों की उपज तथा असिंचित फसल की 5-7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है ।