गाजर की उन्नत खेती
गाजर एक जड़ वाली पौष्टिक सब्जी है। इसमें विटामिन-ए प्रचुर मात्रा में होता है। इसके अलावा इसमें शर्करा, ख्निज लवण, थायमिन एवं राइबोफ्लेविन विटामिन भी होते हैं। गाजर का अधिकांश उपयोग कच्ची खाने व सलाद के रूप में होता है। इससे सब्जी, अचार, मुरब्बा, मिठाइयाँ आदि व्यंजन भी बनाये जाते हैं।
जलवायु एवं भूमि: गाजर के नारंगी रंग तथा आकार पर तापक्रम का बड़ा असर पड़ता है। बहुत ही ठण्डे तापमान में गाजर का रंग बहुत फीका एवं लम्बाई बढ़ जाती है। इसी प्रकार बहुत गर्म तापमान में गाजर का रंग कुछ हल्का एवं लम्बाई कम हो जाती है। अच्छे रंग और आकार के लिए 18 से 24 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान उपयुक्त रहता है। गाजर की अच्छी पैदावार के लिए गहरी, भुरभुरी, हल्की दोमट भूमि उपयुक्त रहती है। भूमि में पानी का निकास अच्छा होना आवश्यक है।
उन्नत किस्में: पूसा केसर, नेन्टिस, पूसा मंदाकिनी, सलेक्शन-5 आदि।
बुवाई का समय एवं बुवाई: गाजर की बुवाई अगस्त से नवम्बर तक की जाती है। देशी गाजर अगस्त से सितम्बर तक तथा अन्य नारंगी रंग की उन्नत किस्में अक्टूबर से नवम्बर तक बोयी जाती हैं। कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 8 से 10 से.मी. रखें। गाजर का 5-6 किलो बीज प्रति हैक्टर पर्याप्त रहता है। बीज की बुवाई मेड़ों पर या समतल भूमि पर की जाती है। गाजर की बुवाई 5-7 दिन के अंतराल पर करते रहना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक: अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद 250 क्विंटल प्रति हैक्टर की दर से पहली जुताई के समय मिट्टी में मिला देवें। गोबर की खाद के अलावा 60 किलो नत्रजन, 40 किलो फाॅस्फोरस तथा 40 किलो पोटाश प्रति हैक्टर देवें। इनमें से नत्रजन की आधी मात्रा तथा फाॅस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा खेत में अंतिम जुताई के समय डाल देवें। शेष बची हुई नत्रजन की मात्रा बुवाई के 45 दिन बाद खड़ी फसल में देवें।
सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई: पहली सिंचाई बोने के तुरन्त बाद कर देवें तथा बीज उगने तक भूमि में नमी बराबर बनाये रखें। गाजर के बीज उगने में 8 से 10 दिन लगते हैं। बीज उगने के बाद जब आवश्यक हो तो सिंचाई करें। शुरू में निराई-गुड़ाई बराबर करें वरना छोटे-छोटे पौधों को खरपतवार पनपने नहीं देंगे।
व्याधि प्रबंध:
पत्ती धब्बा: गाजर की पत्तियों पर गोलाकार धब्बे पड़ जाते हैं व बाद में इनका रंग भूरा पड़ जाता है इसकी वजह से पत्तियां झुलस जाती हैं। नियंत्रण हेतु मैंकोजैब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से आवश्यकतानुसार छिड़कें।
छाछया रोग: इस रोग के शुरू में सफेद चूर्ण जैसे छाटे-छोटे धब्बे पत्तियों पर दिखाई देते हैं जो बाद में पत्तियों और तने को पूर्ण रूप से ढंक देते हैं। नियंत्रण हेतु कैराथियाॅन एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
खुदाई एवं उपज: गाजर की खुदाई करने से पहले हल्की सिंचाई कर देवें जिससे खुदाई करने में आसानी रहे। जब गाजर पूर्ण विकसित हो जावे तब उन्हें खोद लेवें। गाजर की पैदावार 250 से 300 क्विंटल प्रति हैक्टर होती है। विलायती किस्मों की उपज 100 से 150 क्विंटल प्रति हैक्टर होती है।