प्याज की उन्नत खेती
यह एक नकदी फसल है जो प्रायः सर्दी व बरसात के मौसम में उगाई जाती है। इसमें विटामिन-सी, फाॅस्फोरस आदि पौष्टिक तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। प्याज का उपयोग सलाद, सब्जी, अचार तथा मसाले के रूप में किया जाता है। हरी पत्तियों एवं सूखे कंद दोनों ही रूप में उपयोग किया जाता है। गर्मी में लू लगने तथा गुर्दे की बीमारी वाले रोगियों के लिए भी प्याज लाभदायक हैै।
जलवायु एवं भूमि: प्याज की फसल के लिए जलवायु न तो बहुत गर्म और न ही ठण्डी होनी चाहिए। अच्छे कंद बनने के लिए लम्बा दिन तथा कुछ अधिक तापमान होना अच्छा रहता है। साधारणतः सभी प्रकार की भूमियों में इसकी खेती की जा सकती है किन्तु जल निकास युक्त उपजाऊ दोमट मिट्टी जिसमें जीवांश खाद प्रचुर मात्रा में हो सर्वाेŸाम रहती है। भूमि अधिक क्षारीय व अधिक अम्लीय नहीं होनी चाहिए अन्यथा कन्दों की वृद्धि अच्छी नहीं होती है। अगर भूमि में गंधक की कमी हो तो 400 किलो जिप्सम प्रति हैक्टर की दर से खेत की अंतिम तैयारी के लगभग 15 दिन पूर्व मिलाना चाहिए।
उन्नत प्रजातियाँ:
एग्रीफाउन्ड डार्क रेड: यह किस्म खरीफ मौसम में देश के विभिन्न भागों के लिए उपयोगी पायी गई है। इसके कन्द गहरे लाल, गोलाकार आकार के होते हैं, त्वचा अच्छी प्रकार से चिपकी होती है तथा स्वाद मध्यम तीखा होता है। यह किस्म 140-145 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। पैदावार 200-275 क्विंटल प्रति हैक्टर होती है। कन्द में कुल ठोस पदार्थ 12-13 प्रतिशत तक पाया जाता है। यह किस्म राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान द्वारा विकसित की गई है।
एग्रीफाउन्ड लाईट रेड: यह किस्म आकार में गोल तथा लाल रंग वाली होती है। इसकी भण्डारण क्षमता अच्छी है। यह 120-125 दिन में पक कर तैयार होती है तथा इसकी पैदावार 300-325 क्विंटल प्रति हैक्टर प्राप्त की जा सकती है।
एग्रीफाउन्ड व्हाईट: यह किस्म मध्यप्रदेश के निमार क्षेत्र में रबी के मौसम में बोने हेतु उपयुक्त पायी गई है। इसके कंद आकर्षक सफेद रंग, गोलाकार तथा बाहृयशल्क मजबूती से जुड़े रहते हैं तथा व्यास 5-5.5 से.मी. होता है। कुल ठोस पदार्थ 14-15 प्रतिशत तक होता है। यह बुवाई के 160-165 दिन बाद पककर तैयार हो जाती है तथा उत्पादन 200-250 क्विंटल प्रति हैक्टर प्राप्त किया जा सकता है। यह किस्म निर्जलीकरण के लिए बहुत उपयुक्त है।
पूसा रेड: यह किस्म कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। इसका कंद मध्यम व चिपटा से ग्लोबाकार आकार का होता है, जिसका औसत भार 70-90 ग्राम तथा रंग ताँबें जैसा होता है। यह रोपाई के 140-145 दिन बाद पककर तैयार हो जाती है। इसकी कुल उपज 250 क्विं. तक हो जाती है। यह रबी मौसम में उगाई जाती है, परन्तु महाराष्ट्र प्रदेश में रबी तथा खरीफ दोनों मौसम में उगाई जा सकती है।
पूसा माधवी: यह किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा मुजफ्फर नगर के स्थानीय संग्रह से चुनाव पद्धति द्वारा विकसित की गई है। यह मैदानी भागों में उगाने के लिए उपयुक्त है। कन्द आकार में मध्यम चिपटापन लिए हुए, हल्के लाल होते हैं। इसकी भण्डारण क्षमता अच्छी तथा फसल रोपाई के 130-145 दिन खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। औसतन उत्पादन 300 क्विंटल प्रति हैक्टर तक प्राप्त किया जा सकता है। यह किस्म रबी मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त पायी गई है।
नर्सरी तैयार करना: रबी की फसल के लिए बीज मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर तक बोना चाहिए। खरीफ प्याज की खेती के लिए छोटे कंद बनाने के लिए बीज को जनवरी के अंतिम सप्ताह में या फरवरी के प्रथम सप्ताह में बोना चाहिए। इस हेतु 25 ग्राम बीज प्रति वर्ग मीटर पर्याप्त है। एक हैक्टर में फसल लगाने के लिए 10 किलो बीज पर्याप्त होता है। पौध एवं कंद तैयार करने के लिए 1 गुणा 3 मीटर आकार की उठी हुई क्यारियाँ बनाकर नर्सरी तैयार करें। क्यारियों की मिट्टी को बुवाई से पहले अच्छी तरह से भुरभुरी कर लेना चाहिए। बोने के बाद बीजों को बारीक खाद एवं भुरभुरी मिट्टी व घास से ढंक देवें। उसके बाद झारे से पानी देवें फिर अंकुरण के बाद घास-फूँस को हटा देवें। रबी के मौसम में प्याज की नर्सरी में लगने वाली बीमारियों के नियंत्रण हेतु 0.2 प्रतिशत थायोफानेट मिथाइल या 0.4 प्रतिशत ट्राइकोडर्मा विरिडी से बीजोपचार करें। खरीफ की फसल यदि बीज द्वारा पौध बनाकर फसल लेनी हो तो इसकी बुवाई मई के अंतिम सप्ताह से जून के मध्य तक की जाती है और यदि छोटे कंदों द्वारा खरीफ में अगेती फसल या हरी प्याज लेनी हो तो कन्दों को अगस्त माह में बोना चाहिए।
रोपण: प्याज की पौध लगभग 7 से 8 सप्ताह में रोपाई योग्य हो जाती है। खरीफ फसल के लिए रोपाई का उपयुक्त समय जुलाई के अंतिम सप्ताह से लेकर अगस्त तक है तथा रबी मौसम के लिए 15 दिसम्बर से 15 जनवरी तक है। खरीफ मौसम में देरी करने से तथा रबी मौसम में जल्दी रोपाई करने से फूल निकल आते हैं। रोपाई करते समय कतारों के बीच की दूरी 15 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. रखते हैं। रोपाई खेत में क्यारियाँ बना कर करनी चाहिए। कंदों की बुवाई 45 से.मी. की दूरी पर बनी मेड़ों पर 10 से.मी. की दूरी पर दोनों तरफ करते हैं। बुवाई के लिए 1.5 से 2 से.मी. व्यास वाले आकार के कन्द ही चुनने चाहिए। एक हैक्टर के लिए 10 क्विंटल कन्द पर्याप्त होते हैं।
खाद एवं उर्वरक: प्याज के लिए अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 400 से 500 क्विंटल प्रति हैक्टर की दर से खेत तैयार करते समय मिला देवें। इसके अलावा 100 किलो नत्रजन, 50 किलो फाॅस्फोरस तथा 100 किलो पोटाश की आवश्यकता होती है। नत्रजन की आधी मात्रा तथा फाॅस्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई से पूर्व खेत की तैयारी के समय देवें। नत्रजन की शेष मात्रा रोपाई के एक डेढ़ माह बाद खड़ी फसल में देवें। वर्मी कम्पोस्ट 10 टन के साथ 75 किलो नत्रजन, 37 किलो फाॅस्फोरस तथा 75 किलो पोटाश प्रति हैक्टर देने से अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है। जिंक की कमी वाले क्षेत्रों में रोपाई से पूर्व जिंक सल्फेट 25 किलो प्रति हैक्टर की दर से भूमि में मिलावें। सूक्ष्म पोषक तत्वों तांबा व मैंगनीज की कमी वाली भूमि में 10.5 किलो काॅपर सल्फेट एवं 16.5 किलो मैंगनीज सल्फेट प्रति हैक्टर की दर से भूमि में उपयोग करें।
खरपतवार नियंत्रण: आॅक्सीफ्लोरफेन 23.5 ई.सी. 800 मिली प्रति हैक्टर की दर से पौध रोपण से पूर्व खेत में छिड़काव करें।
सिंचाई: बुवाई या रोपाई के साथ एवं उसके तीन चार दिन बाद हल्की सिंचाई अवश्य करें जिससे मिट्टी नम रहे। बाद में भी हर आठ से बारह दिन के अन्तराल पर सिंचाई अवश्य करते रहें। फसल तैयार होने पर पौधे के शीर्ष पीले पड़कर गिरने लगते हैं। इस समय सिंचाई बंद कर देनी चाहिए।
खुदाई: कन्दों सेें लगाई गई प्याज की फसल 90 से 110 दिन में तैयार हो जाती है तथा बीजों से तैयार की गई फसल 140 से 150 दिन में तैयार हो जाती है। रबी की फसल तैयार होने पर पत्तियों के शीर्ष पीले पड़कर सूख जाते हैं। इसके 15 दिन बाद खुदाई करनी चाहिए। खरीफ मौसम में पत्तियां गिरती नहीें हैं अतः जब गांठों का आकार 6 से 8 से.मी. व्यास वाला हो जाये तो पत्तियों को पैरों से जमीन पर गिरा देना चाहिए जिससे पौधों की वृद्धि रूक जाये एवं गांठें ठोस हो जावें। इसके लगभग 15 दिन बाद गांठों की खुदाई करनी चाहिए।
सुखाना: खुदी हुई गांठों को पत्तियों के साथ एक सप्ताह तक सुखावें। यदि धूप तेज हो तो छाया में लाकर रख देवें तथा एक सप्ताह बाद पत्तियों को गांठ के दो से ढाई से.मी. ऊपर से काट दें तथा एक सप्ताह तक सुखावें।
कीट प्रबंध:
पर्ण जीवी: ये कीट छोटे आकार के होते हैं तथा इनका आक्रमण तापमान में वृद्धि के साथ तीव्रता से बढ़ता है और मार्च में अधिक स्पष्ट दिखाई देने लगता है। इन कीटों द्वारा रस चूसने से पत्तियां कमजोर हो जाती हैं तथा आक्रमण के स्थान पर सफेद चकत्ते पड़ जाते हैं। नियंत्रण हेतु मैलाथियाॅन 50 ईसी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। आवश्यक हो तो 15 दिन बाद छिड़काव दोहरावें।
व्याधि प्रबंध:
तुलासिता: इस रोग से पत्तियों की निचली सतह पर सफेद रूई जैसी फफूँद की वृद्धि दिखाई देती है। रोग के प्रभाव से पत्तियों का रोगग्रस्त भाग सूख जाता है। नियंत्रण हेतु मैन्कोजैब या जाइनेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।
अंगमारी: इस रोग के कारण पत्तियों की सतह पर सफेद धब्बे बन जाते हैं जो बीच में बैंगनी रंग के हो जाते हैं। नियंत्रण हेतु मैन्कोजैब या जाइनेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए। इसके साथ तरल साबुन का घोल अवश्य मिलाना चाहिए।
गुलाबी जड़ सड़न: इस रोग से जड़ें हल्की गुलाबी होकर गलने लगती हैं। नियंत्रण हेतु शल्क कंदों को बाविस्टिन 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल से 30 मिनट तक उपचारित करके लगाना चाहिए।
भण्डारण: प्याज का भण्डारण अच्छे हवादार कमरों में जिनका फर्श सीलन रहित हो, करना चाहिए। इन्हें फर्श पर 8-10 से.मी. की परत बनाकर फैला देना चाहिए। भण्डारण में प्याज का ढेर कभी नहीं लगाना चाहिए। कमरे में भण्डारित प्याज को बीच-बीच में पलटते रहना चाहिए तथा सड़ी व अंकुरित गांठों को निकाल देना चाहिए। प्याज के कंदों के सुरक्षित भण्डारण के लिए बाँस, सरकंडा या लकड़ी से दो खाने बनाकर प्याज भण्डार भी बनाया जा सकता है।
उपज: प्याज से प्रति हैक्टर लगभग 200 से 300 क्विंटल तक पैदावार ली जा सकती है।