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खेती को लाभ का धंधा बनाने के उपाय

द्वारा, दिनांक 19-08-2019 08:48 PM को 1370

खेती को लाभ का धंधा बनाने के उपायखेती को लाभ का धंधा बनाने के 3 उपाय है पहला लागत को काम करना, दूसरा उत्पादन बढ़ाना और तीसरा जो उत्पादन किया है उसका अधिक से अधिक मूल्य प्राप्त करना। आज हम उत्पादन लागत कम करने के तरीको की चर्चा करेंगे। सभी किसान भाई जानते है किसी भी फसल के उत्पादन के लिए बहुत से आदानों की आवश्यकता होती है जिन्हे हम इस प्रकार और विभाजित कर सकते है जैसे बाजार से ख़रीदे जाने वाले आदान (बीज, रासायनिक खाद/उर्वरक व पौध संरक्षण रसायन), स्वयं के संसाधन (ट्रेक्टर, मशीनरी, जैविक खाद, कृषि यंत्र आदि), लगने वाला मानव श्रम और ऊर्जा (सिंचाई, खेत की तैयारी, फसल काल में निंदाई-खुदाई, फसल में दवा का छिड़काव, फसल की कटाई-गहाई)आदि। इस पुरे लेख को तीन भागो में विभक्त किया गया है पहले भाग में आदान लागत कम करने के तरीके बताये गए है, दूसरे भाग में उत्पादन बढ़ाने पर तथा तीसरे भाग में मूल्य संवर्धन पर जानकारी दी गयी है।

 पार्ट - 1 

कृषि उत्पादन में आदानों का उपयोग किया जाना आवश्यक है परन्तु सही समय पर, सही मात्रा में सही तरीके से कृषि आदानों का उपयोग कर या इनका दुरुपयोग रोक कर फसल उत्पादन की लागत को कम किया जा सकता है। 1. बीज की लागत कम करने के लिए निम्न उपाय अपनाये।

(अ) उन्नत किस्म का बीज प्रयोग करें।

(ब) स्वयं का बीज उत्पादन करें या समूह माध्यम से बीज उत्पादन करें।

(स) बीज की सिफारिश की गयी मात्रा का ही उपयोग करे अधिक बीज दर से उत्पादन कम होता है।

2. रासायनिक उर्वरको की पूरी मात्रा कभी फसल को नहीं मिलती है। उर्वरक उपयोग दक्षता को बढ़ाने के लिए निम्न उपाय अपनाये।

(अ) अपनी भूमि का मिटटी परिक्षण करवाये।

(ब) मिट्टी परिक्षण की सिफारिश के आधार पर ही उर्वरको का उपयोग करे।

(स) जैविक खाद एवं जीवाणु खाद का उपयोग अवश्य करें।

(द) खड़ी फसल में दिए जाने वाला यूरिया सल्फर या नीम लेपित हो या स्वयं नीम खली से लपित यूरिया तैयार कर फसल को देवे।

3. सिंचाई की दक्षता बढ़ाने के लिए निम्न उपाय अपनाये।

(अ) क्यारियाँ छोटी बनाये।

(ब) स्प्रिंकलर विधि से सिंचाई करें और पानी बचाये।

(स) कृषि फसलों में भी ड्रिप सिंचाई विधि का सफल प्रयोग कर पानी की बचत करने के साथ उत्पादन भी बढ़ाया जा रहा है।

(द) सब्जी फसलों एवं दुरी पर लगायी गयी फसलों में मल्च का उपयोग भी प्रभावी है।

4. पौध संरक्षण रसायनो का संतुलित उपयोग

(अ) पूरी जानकारी के बिना किसी भी रसायन का उपयोग नहीं करें।

(ब) पौध संरक्षण रसायनो के साथ चिपकाने एवं फ़ैलाने वाले पदार्थो का उपयोग दवा को प्रभावी बनता है ।

(स) अत्यधिक जहरीली (लाल एवं पीले त्रिकोण वाली) दवाओं का प्रयोग खाद्य फसलों में ना करे।

(द) सभी फसलों में आई.पी.एम. विधि से किट नियंत्रण करे। फेरोमोन ट्रैप, लाइट ट्रैप, घर पर बने जैविक कीटनाशको का प्रयोग कर लागत कम कर सकते है।

 पार्ट - 2

  1. फसल का चयन : खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए फसल का चयन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। किसान अपने संसाधनो जैसे मौसम, मिटटी, पानी, मजदुर एवं बाजार को ध्यान में रखकर फसल का चयन करना चाहिए। फसल अधिक उत्पादन एवं लाभ देने वाली होनी चाहिए जैसे गेहूं की तुलना में मसाला एवं औषधीय फसलों की उत्पादन लागत कम और भाव बढ़िया मिलने से मसाला एवं औषधीय फसलों का उत्पादन लाभकारी है।
  2. किस्म चयन : फसल चयन के पश्चात उसकी किस्म का चयन महत्वपूर्ण है इसलिए अपने क्षेत्र के लिए अधिसूचित किस्म का प्रयोग बोनी के लिए करना चाहिए। हर किस्म प्रत्येक क्षेत्र के लिए अनुकूल नहीं होती है ऐसी स्थिति में उत्पादन प्रभावित होना स्वाभाविक है।
  3. प्रमाणित बीज का उपयोग : बीज बढ़िया होगा तो उत्पादन भी बढ़िया होगा इसलिए चयनित किस्म का प्रमाणित बीज या स्वयं द्वारा उत्पादित बीज का प्रयोग बोने के लिए करना चाहिए। मिलावट वाले बीज के उपयोग से फसल एक सार नहीं होने से बाजार मूल्य काम मिलता है।
  4. बीज उपचार : रोग मुक्त पौधे प्राप्त करने के लिए बीज को उपचारित करना आवश्यक है। बीज को आवश्यकता अनुरूप फफूंदनाशी, कीटनाशी एवं जीवाणु खाद से उपचारित किया जाता है। बीज उपचार तीनो से करने के लिए पहले फफूंदनाशी का उपयोग करे फिर कीटनाशी करना एवं अंत में जीवाणु खाद से बीज उपचार करना चाहिए।
  5. बीज की सही मात्रा : प्रत्येक फसल के लिए वैज्ञानिको द्वारा सामान्य एवं विपरीत परिस्थितियों के लिए बीज दर का निर्धारण किया गया है। उचित बीज दर का उपयोग किये जाने से प्रति हेक्टेयर उचित पौध संख्या प्राप्त होती है जिससे अधिकतम उत्पादन प्राप्त होता है। अधिक बीज के उपयोग से पौधे घने हो जाते है और उनमे खाद, पानी, धुप के लिए प्रतिस्पर्धा होती है जिससे प्रति पौधा उत्पादन कम होता है और किसान का लाभ काम हो जाता है।
  6. सही विधि से बोनी : ज्यादातर कृषक रबी में छिड़कवा विधि से बोनी करते है जिससे बीज की अधिक मात्र लगती है साथ ही प्रत्येक पौधा समान दुरी पर नहीं होता है फलस्वरूप प्रत्येक पौधे उपज एक सामान नहीं होने से उत्पादन प्रभावित होता है। परीक्षणों द्वारा ये ज्ञात हुआ है की कतार में सही दूरी पर फसल लगाने से छिड़कवा विधि की तुलना में अधिक उत्पादन प्राप्त होता है। इसलिए फसल अनुसार सही दुरी पर कतार में बोनी करें। \
  7. बोनी की दिशा : खरीफ फसलों में बोनी पूर्व से पश्चिम तथा रबी फसलों में बोनी उत्तर से दक्षिण करने से अधिक उत्पादन प्राप्त होता है।
  8. समय पर खरपतवार प्रबंधन : किसी भी फसल में खरपतवार होने से उत्पादन बहुत प्रभावित है। सही समय पर नियंत्रण नहीं होने से पूरी फसल भी ख़राब हो सकती है। साथ ही उत्पाद के साथ खरपतवार के बीज मिले होने से भाव भी काम मिलता है। ज्यादातर फसलों में 20 से 40 दिन की फसल अवस्था खरपतवारो से सर्वाधिक प्रभावित होती है। अतः 20 से 40 दिन की अवस्था पर फसल को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए
  9. खाद एवं उर्वरक प्रबंधन : जैविक खाद का प्रयोग अवश्य करना चाहिए इसके साथ ही अनुशंषित मात्र में ही उर्वरको का उपयोग करना चाहये। गंधक एवं जिंक का प्रयोग जरूर करना चाहिए। तेलवाली फसलों में गंधक से तेल की मात्र बढ़ती है। इसी प्रकार से फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्र बोनी के समय ही प्रयोग करनी चाहिए। दलहनी फसलों में नत्रजन की मात्र बोनी के समय प्रयोग करना चाहिए अन्य सभी फसलों में नत्रजन की मात्र २ या ३ भागो में बटकर प्रयोग करना चाहिए। सही अवस्था पर दिया गया नत्रजन उर्वरक फसल की उत्पादन क्षमता बढ़ाता है वही गलत समय पर नत्रजन का उपयोग उत्पादन कम करता है तथा पौधों में रोगो और कीटो के प्रभाव को बढ़ाता है।
  10. फसल संरक्षण : फसल में रोग और कीटो का आक्रमण होना स्वाभाविक है इसके लिए समय समय पर फसल निरिक्षण करते रहे तथा आर्थिक हानि स्तर से अधिक प्रकोप होने पर ही रसायनो का प्रयोग करे। प्राकृतिक किट एवं रोग नियंत्रण के उपाय अपनाने से लगत काम होती है। सही रसायनो का उपयोग कृषि वैज्ञानिको की सलाह से करें।
  11. सिंचाई प्रबंधन : प्रत्येक फसल की जल आवश्यकताएं भिन्न होती है। अपनी जल उपलब्धता के आधार पर ही फसल का चयन करना चाहिए अन्यथा पानी के कमी से उत्पादन प्रभावित हो सकता है। प्रत्येक फसल में वैज्ञानिको द्वारा कुछ अवस्थाये चिन्हित की गयी है जिन पर पानी नहीं मिलने से फसल का उत्पादन अप्रत्याशित रूप से प्रभावित होता है। अतः अपनी जल उपलब्धता के आधार पर इन क्रांतिक अवस्थाओ पर सिंचाई करने से उत्पादन कम प्रभावित होता है।
  12. सिंचाई की विधि : सतह पर सिंचाई करने की अपेक्षा ड्रिप से सिंचाई करने पर जल की अत्यधिक बचत होती है। स्प्रिंकलर द्वारा सिंचाई करके भी जल को बचाया जा सकता है। सतही सिंचाई करने पर क्यारे छोटे बनाये तथा उन्हें अत्यधिक न भरे।
  13. समय पर कटाई एवं गहाई : फसल की समय पर कटाई अत्यंत आवश्यक है। अधिक सूखने पर कटाई करने से फैसले झड़ सकती है जिससे उत्पादन प्रभावित होने के साथ ही अगली फसल में ये खरपतवार का काम करते है। सब्जी एवं फल वाली फसलों में भी तुड़ाई अत्यंत महत्वपूर्ण है। कटाई सुबह के समय किये जाने से नुकसान कम होता है। कटी फसल को खलिहान में सुखाकर थ्रेशिंग करनी चाहिए।

 पार्ट - 3

खेती को लाभ का धंधा बनाने के पहले दो भागो में आपने पढ़ा लागत कम करने एवं उत्पादन बढ़ाने के बारे में इस भाग में हम मूल्य संवर्धन की संभावनाएं बताई जायेगी।

कृषि एवं उद्यानिकी फसलों को निम्न फसल समूहों में बांटा जा सकता है।

1. अनाज : गेहूं, जौ एवं चावल

2. मोटा अनाज : जई, मक्का, ज्वार, रागी, सामा, कोदो, कुटकी आदि

3. दलहन : चना, अरहर, मूंग, उड़द, मसूर, मोठ, चंवला, कुलथ, राजमा आदि

4. तिलहन : सोयाबीन, मूंगफली, सरसों, अलसी, तिल, रामतिल, कुसुम, सूरजमुखी, अरंडी, तारामीरा आदि

5. रेशेवाली : कपास, सन, जूट आदि

6. शर्करा फसले : गन्ना, चुकंदर, मीठी ज्वार आदि

7. फल : आम, केला, पपीता, चीकू, अमरुद, निम्बू, संतरा, मोसम्बी, अंगूर, अनार, बेर, आवंला, जामुन, करोंदा, कटहल, किन्नू, सीताफल आदि

8. सब्जी : टमाटर, बेंगन, भिन्डी, मिर्ची, शिमला मिर्च, कद्दू , तुरई, गिलकी, चिरचिडा, लोकी, करेला, ककड़ी, खीरा, तरबूज, खरबूज, टिंडा, ग्वार, लोबिया, सेम, फ्रेंच बीन, मटर, गाजर, चुकंदर, मूली, अरबी, आलू, शलजम, शकरकंद, सुरन, फूलगोभी, पत्ता गोभी, गांठ गोभी, प्याज आदि

9. फूल : गुलाब, गेंदा, रजनीगंधा, ट्यूबरोज आदि

10. मसाले : अदरक, हल्दी, धनिया, मेथी, जीरा, अजवाइन, सुआ, सौंफ, एनीसीड, कलोंजी, राई, लहसुन आदि

11. औषधीय : सफ़ेद मूसली, अश्वगंधा, कालमेघ, सनाय, स्टेविआ, एलोवेरा, कोलियस आदि

12. सुगन्धित : तुलसी, मेंथा, लेमन ग्रास, सिट्रोनेला, खस, रोजमेरी, पामरोसा, पचोली आदि

13. अन्य : पान

अपने उत्पादन को सीधे मंडी में बेचने की अपेक्षा उसमे मूल्य संवर्धन की सम्भावना तलाश कर ग्राम स्तर पर ही रोजगार बढ़ाये जा सकते है। मूल्य संवर्धन विधियां अपनाकर किसान भाई अपनी फसल का मूल्य संवर्धन कर सकते है या अपनी रूचि के अनुसार फसल बदलकर अपनी आय को बढ़ा सकते है। मूल्य संवर्धन गतिविधियों के लिए किसान भाई समूह बनाकर अधिक प्रगति कर सकते है।

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