पत्तागोभी की उन्नत खेती
पत्ता गोभी का उपयोग सब्जी, सलाद, अचार और निर्जलीकृत सब्जी के रूप में किया जाता है। पोषण की दृष्टि से भी इसका अच्छा स्थान है। इसमें विटामिन ’ए’ व ‘सी’ की मात्रा अधिक पाई जाती है।
जलवायु एवं भूमि: इसके लिए ठण्डी एवं नम जलवायु की आवश्यकता होती है। गर्म मौसम में इसके गुणों का ह्रास हो जाता है तथा इसका स्वाद भी नष्ट हो जाता है। शुष्क जलवायु में इसके डंठलों का विकास अधिक होता है। अधिक पैदावार के लिए उपजाऊ दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है किन्तु बलुई मिट्टी में भी सफलतापूर्वक लगाया जा सकता है।
उन्नत किस्में: पत्ता गोभी की किस्मों को मुख्यतः दो वर्गों में बांटा जाता है -
अगेती किस्में: इनकी बुवाई का समय सितम्बर माह है। प्राइड आॅफ इण्डिया, गोल्डन एंकर एवं मित्रा (संकर) आदि प्रमुख किस्में हैं।
पछेती किस्में: इनके बोने का समय अक्टूबर माह है। पूसा ड्रम हैड, लेट ड्रम हैड, सलेक्सन-8, हाइब्रिड-10 (संकर) आदि प्रमुख किस्में हैं।
नर्सरी तैयार करना: बीजों की बुवाई उठी हुई क्यारियों में की जाती है। क्यारियों के लिए अच्छे जलनिकास वाली जीवांशयुक्त उपजाऊ भूमि का चयन किया जाना चाहिए। बीेजों को कैप्टान या थाइरम 2 से 3 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित कर बुवाई के काम में लेवें। अगेती किस्म के बीज अगस्त से सितम्बर व पिछेती किस्म के बीज सितम्बर से अक्टूबर में बोये जाते हैं। अगेती किस्म के लिए 500 ग्राम व पिछेती किस्म के लिए 375 ग्राम बीज एक हैक्टर की पौध तैयार करने के लिए पर्याप्त होता है।
भूमि की तैयारी एवं रोपण: भूमि की 3 से 4 जुताई करनी चाहिए। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से की जाती है फिर देशी खाद बिखेर कर भूमि की जुताई करते हैं तथा मिट्टी भुरभुरी करके पाटे की सहायता से समतल कर लेते हैं। खेत में उचित आकार की क्यारियाँ तथा नालियाँ बना लेते हैं। बुवाई के 4 से 6 सप्ताह बाद पौध रोपाई योग्य हो जाती है। अगेती किस्मों में कतार से कतार तथा पौधे से पौधे की दूरी 45 से.मी. व पिछेती किस्मों में कतार से कतार की दूरी 60 से.मी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 45 से.मी. रखनी चाहिए। रोपने से पूर्व पौध को एजोटोबैक्टर कल्चर के घोल में 15 मिनट डुबोकर फिर रोपाई करना लाभप्रद होता है।
खाद एवं उर्वरक: खेत की तैयारी के समय 250 से 300 क्विंटल अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद भूमि में मिला दें। इसके अतिरिक्त 150 किलो नत्रजन, 80 किलो फाॅस्फोरस तथा 75 किलो पोटाश प्रति हैक्टर की दर से देवें। नत्रजन की आधी मात्रा तथा फाॅस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा पौध लगाने के समय भूमि में मिला देवें। बची हुई नत्रजन की मात्रा पौध लगाने के 6 सप्ताह बाद देवें।
सिंचाई एवं निराई गुड़ाई: पौध की रोपाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई करनी चहिए। उचित विकास के लिए भूमि में समुचित नमी का होना आवश्यक होता है अतः आवश्यकतानुसार उचित समय पर सिंचाई करें। अधिक दिन तक सिंचाई न करने के बाद यदि एक साथ बहुत अधिक सिंचाई कर दी गई हो तो गोभी के फटने की संभावना रहती है अतः सिंचाई का विशेष ध्यान रखें। सिंचाई हर 10 दिन के बाद की जा सकती है। खरपतवारों को बढ़ने से रोकने तथा पौधों के चारों ओर की मिट्टी भुरभुरी करने के लिए खेत की 2 से 3 बार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। निराई-गुड़ाई सिंचाई के बाद उस समय करनी चाहिए जब मिट्टी थोड़ी सूख जावे। रोपाई के 5-6 सप्ताह बाद पौधों पर मिट्टी चढ़ानी चाहिए।
प्रमुख कीट एवं व्याधि प्रबंध:
कीट प्रबंध:
पत्ती भक्षक कीट: इसमें आरा मक्खी, फली बीटल, लटें, हीरक तितली एवं गोभी की तितली मुख्य हैं। ये कीट पत्तियों को खाकर नुकसान पहुँचाते हैं। नियंत्रण हेतु हेड बनने से पूर्व मैलाथियाॅन 5 प्रतिशत अथवा कार्बोरिल 5 प्रतिशत के 20 किलो चूर्ण का प्रति हैक्टर की दर से भुरकाव करना चाहिए। हेड बनने के बाद एक मिलीलीटर मैलाथियान 50 ई.सी. का प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। हीरक तितली हेतु कीटनाशी का महीन बूँदों के रूप में छिड़काव करना उत्तम पाया गया है। आवश्यकतानुसार छिड़काव 15 दिन के बाद दोहरावें।
मोयला: ये कीट पत्तियों से रस चूसते हैं जिससे पत्तियां पीली पड़ जाती हैं। नियंत्रण हेतु कार्बोरिल 5 प्रतिशत चूर्ण का 20 से 25 किलो प्रति हैक्टर की दर से भुरकाव करें या मैलाथियान 50 ई.सी. एक मिलीलीटर का प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।
डाइमंड बैक मोथ: बीटी के (बेसिलस थुरिंजेंसिस कस्टकी) 500 मि.ली. प्रति हैक्टर के दो छिड़काव प्रथम छिड़काव रोपण के 25 दिन बाद एवं दूसरा इसके 10 दिन बाद करें। अंतिम छिड़काव फसल काटने के 4 सप्ताह पूर्व करें अथवा स्पाइनोसेड 25 एस.सी. 15 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हैक्टर की दर से 3 बार छिड़काव करें या प्रोफेनोस 40 ई.सी. 1000-1500 मिली लीटर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव अत्यन्त उपयुक्त पाये गये हैं।
व्याधि प्रबंध:
आर्द्र गलन: यह रोग गोभी की अगेती किस्मों में नर्सरी अवस्था में होता है। जमीन की सतह पर स्थित तने का भाग काला पड़कर कमजोर हो जाता है तथा नन्हे पौधे गिरकर मरने लगते हैं। नियंत्रण हेतु बुवाई से पूर्व बीजों को थाइरम या कैप्टान 3 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। रोग के लक्षण दिखाई देने पर काॅपर आॅक्सी क्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें।
काला सड़न: पौधों की पत्तियों की शिराएँ काली दिखाई देती हैं। उग्रावस्था में यह रोग गोभी के अन्य भागों पर भी दिखाई देता है जिससे फूल के डंठल अंदर से काले होकर सड़ने लगते हैं। नियंत्रण हेतु बीजों को बुवाई से पूर्व स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 250 मिलीग्राम अथवा बाविस्टिन एक ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में 2 घंटे उपचारित कर छाया में सुखाकर बुवाई करें। पौध रोपण के पूर्व पौध की जड़ों को स्ट्रेप्टोसाइक्लिन एवं बाविस्टिन के घोल में एक घंटे तक डुबोकर लगावें तथा फसल में रोग के लक्षण दिखने पर उपरोक्त दवाओं का छिड़काव करें।
झुलसा: इस रोग से पत्तियों पर गोल आकार के छोटे से बड़े भूरे धब्बे बन जाते हैं तथा उनमें छल्लेनुमा धारियाँ बनती हैं, अन्त में धब्बे काले रंग के हो जाते हैं। नियंत्रण हेतु जाइनेब या मैंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। छिड़काव आवश्यकतानुसार 5 दिन के अन्तराल पर दोहरावें।
तुड़ाई एवं उपज: ठोस एवं पूर्ण विकसित गोभी तुड़ाई के योग्य मानी जाती है। अगेती फसल की उपज प्रति हैक्टर 200 से 300 क्विंटल तथा पिछेती किस्मों से 300 से 400 क्विंटल होती है। संकर किस्मों से तैयार होने वाली गोभी समान आकार की व एक ही समय में तुड़ाई लायक हो जाती है। इसके अलावा शत-प्रतिशत गोभी प्राप्त होती है जो खेत में लम्बे समय तक बिना फटे टिक पाती है तथा इन किस्मों से 400 से 500 क्विंटल प्रति हैक्टर की उपज आसानी से प्राप्त की जा सकती है।