खरीफ प्याज की उन्नत खेती
जलवायु एवं भूमि : प्याज ठण्डे मौसम की फसल हैं, लेकिन इसे खरीफ में भी उगाया जा सकता हैं। कंद निर्माण के पूर्व प्याज की फसल के लिए लगभग 21° से. ग्रे. तापक्रम उपयुक्त माना जाता है। जबकि शल्क कंदों में विकास के लिए 15° से. ग्रे. से 25° से. ग्रे. का तापक्रम उत्तम रहता हैं। प्याज की खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है, प्याज की खेती के लिए उचित जलनिकास एवं जीवांशयुक्त उपजाऊ दोमट तथा बलुई दोमट भूमि जिसका पी.एच. मान 6. 5-7.5 के मध्य हो सर्वोत्तम होती है, प्याज को अधिक क्षारीय या दलदली मृदाओं में नही उगाना चाहिए।
उन्नत किस्मे :
एग्री फाउंड डार्क रेड : यह किस्म भारत में सभी क्षैत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसके शल्क कन्द गोलाकार, 4-6 सेमीआकार वाले, परिपक्वता अवधि 95-110, औसत उपज 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर । यह किस्म खरीफ प्याज उगाने के लिए अनुसंशित है।
N - 53 : भारत के सभी क्षैत्रों में उगाया जा सकता है, इसकी परिपक्वता अवधि 140 दिन, औसत उपज 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, खरीफ प्याज उगाने हेतु अनुसंशित किस्म हैं।
भीमा सुपर : यह किस्म भी खरीफ एवं पिछेती खरीफ के लिये उपयुक्त है। यह किस्म 110-115 दिन में तेयार हो जाती है तथा प्रति हेक्टेयर 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज देती है।
खेत की तैयारी : खेत की प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करना चाहिए। इसके उपरान्त 2 से 3 जुताई कल्टीवेटर या हैरा से करें, प्रत्येक जुताई के पश्चात् पाटा अवश्य लगाऐं जिससे मिट्टी भुर-भुरी हो जाऐ। भूमि की सतह से 15 सेंटीमीटर उंचाई पर 1.2 मीटर चोड़ी पट्टी पर रोपाई की जाती है अतः खेत को रेज्ड-बेड सिस्टम से तेयार किया जाना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक : प्याज की फसल को अधिक मात्रा में पोषक तत्वो की आवश्यकता होती है प्याज की फसल में खाद एवं उर्वरक का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर ही करना चाहिए। गोबर की सड़ी खाद 20-25 टन प्रति हेक्टेयर रोपाई से एक-दो माह पूर्व खेत में डालना चाहिए। इसके अतिरिक्त नत्रजन 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, फॉस्फोरस 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा पोटाश 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर देने की सिफारिश की जाती हैं। इसके अतिरिक्त सल्फर 25 किलोग्राम एवं जिंक सल्फेट 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्याज की गुणवत्ता सुधारने के लिए आवश्यक होते हैं।
पौध तैयार करना : पोध शाला के लिए चुनी हुई जगह की पहले जुताई करें इसके पश्चात् उसमें पर्याप्त मात्रा में गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट डालना चाहिए। पोधशाला का आकार 3 मीटर X 0.75 मीटर रखा जाता हैं और दो क्यारियों के बीच 60-70 सेंटीमीटर की दूरी रखी जाती हैं जिससे कृषि कार्य आसानी से किये जा सके। पौधशाला के लिए रेतीली दोमट भूमि उपयुक्त रहती हैं, पोध शैय्या लगभग 15 सेमी. जमीन से ऊँचाई पर बनाना चाहिए बुवाई के बाद शैय्या में बीजों को 2-3 सेमी मोटी सतह जिसमें छनी हुई महीन मृदा एवं सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद से ढंक देना चाहिए। बीजों को हमेशा पंक्तियों में बोना चाहिए। खरीफ मौसम की फसल के लिए 5-7 सेंटीमीटर लाइन से लाइन की दूरी रखते हैं। इसके पश्चात् क्यारियों पर कम्पोस्ट, सूखी घास की पलवार (मल्च) बिछा देते हैं जिससे भूमि में नमी संरक्षण हो सकें। पोधशाला में अकुरण हो जाने के बाद पलवार हटा देना चाहिए। इस बात का ध्यान रखा जाये कि पोधशाला की सिंचाई पहले फव्वारे से करना चाहिए। पौधों को अधिक वर्षा से बचाने के लिए पौधशाला या रोपणी को पाॅलीटनल में उगाना उपयुक्त होगा।
बीज की मात्रा : खरीफ मौसम के लिए 15-20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती हैं।
पौधशाला में बीज की बुवाई यवम खेत में रोपाई : खरीफ मौसम हेतु पोधशाला शैय्या पर बीजों की पंक्तियों में बुवाई 1-15 जून तक कर देना चाहिए, जब पोध 45 दिन की हो जाऐ तो उसकी रोपाई कर देना उत्तम माना जाता हैं। पोध की रोपाई कूड़ शैय्या पद्धिति से तेयार खेतों पर करना चाहिए, इसमें 1.2 मीटर चोड़ी शैय्या एवं लगभग 30 से.मी. चोड़ी नाली तेयार की जाती हैं।
खरपतवार नियंत्रण : फसल को खरपतवारों से मुक्त रखने के लिए कुल 3 से 4 निराई-गुडाई की आवश्यकता होती है। प्याज के पोधे एक-दूसरे के नजदीक लगाये जाते है तथा इनकी जडे भी उथली रहती है अतः खरपतवार नष्ट करने के लिए रासायनिक खरपतवार नाशियों का उपयोग भी किया जा सकता है। इसके लिए पैन्डीमैथेलिन 2.5 से 3.5 लीटर प्रति हेक्टेयर अथवा आॅक्सीलोरोफेन 600-1000 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर खरपतवार नाशक पौध की रोपाई के 3 दिन पश्चात 750 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना बहुत प्रभावी और उपयुक्त पाये गये हैं।
सिंचाई एवं जल निकास : खरीफ मौसम की फसल में रोपण के तुरन्त बाद सिंचाई करना चाहिए अन्यथा सिंचाई में देरी से पोधे मरने की संभावना बढ़ जाती हैं। खरीफ मौसम में उगाई जाने वाली प्याज की फसल को जब मानसून चला जाता हैं उस समय सिंचाई आवश्यकतानुसार करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखा जाऐ कि शल्ककन्द निर्माण के समय पानी की कमी नहीं होना चाहिए क्योंकि यह प्याज फसल की क्रान्तिक अवस्था होती हैं क्योंकि इस अवस्था में पानी की कमी के कारण उपज में भारी कमी हो जाती हैं, जबकि अधिक मात्रा में पानी बैंगनी धब्बा (पर्पिल ब्लाच) रोग को आमंत्रित करता हैं। काफी लम्बे समय तक खेत को सूखा नहीं रखना चाहिए अन्यथा फसल जल्दी आ जाऐगी, परिणामस्वरूप उत्पादन कम प्राप्त होगा। अतः आवश्यकतानुसार 8-10 दिन के अंतराल से हल्की सिंचाई करना चाहिए। यदि अधिक वर्षा या अन्य कारण से खेत में पानी रूक जाऐ तो उसे शीघ्र निकालने की व्यवस्था करना चाहिए अन्यथा फसल में फफूंदी जनित रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है।
कंदो की खुदाई : खरीफ प्याज की फसल लगभग 5 माह में नवम्बर-दिसम्बर माह में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। जैसे ही प्याज की गाँठ अपना पूरा आकर ले और पत्तियां सखने लगे तो लगभग 10-15 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिए और प्याज के पौधों के शीर्ष को पैर की मदद से कुचल देना चाहिए। इससे कंद ठोस हो जाते हैं और उनकी वृद्धि रूक जाती है। इसके बाद कंदों को खोदकर खेत में ही कतारों में ही रखकर सुखाते है।
कीट एवं रोग नियंत्रण :
थ्रिप्स : ये कीट पत्तियों का रस चूसते हैं जिसके कारण पत्तियों पर चमकीली चांदी जैसी धारियां या भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। ये बहुत छोटे पीले या सफेद रंग के कीट होते हैं जो मुख्य रूप से पत्तियों के आधार या पत्तियों के मध्य में घूमते हैं। इसके नियंत्रण हेतु नीम तेल आधारित कीटनाशियों का छिड़काव करें या इमीडाक्लोप्रिड कीटनाशी 17.8 एस.एल. दवा की मात्रा 150 मिली. /हे. 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
माईट : इस कीट के प्रकोप के कारण पत्तियों पर धब्बों का निर्माण हो जाता हैं और पौधे बौने रह जाते हैं। इसके नियंत्रण हेतु 0.05 % डाइमेथोएट दवा का छिड़काव करें।
बैंगनी धब्बा या पर्पल ब्लोच : यह एक फफूंदी जनित रोग हैं, इस रोग का प्रकोप दो परिस्थितियों में अधिक होता हैं पहला अधिक वर्षा के कारण दूसरा पौधों को अधिक समीप रोपने से पत्तियों पर बैंगनी रंग के धब्बे बन जाते हैं। परिणामस्वरूप पोधों की बढ़वार और विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके लक्षण दिखाई देने पर मैन्कोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी का 10 दिन के अन्तराल से छिड़काव करें। इन फफूंदनाशी दवाओं में चिपकने वाले पदार्थ अवश्य मिला दें जिससे घोल पत्तियों पर प्रभावी नियंत्रण हेतु चिपक सकें।
डॉ. सी. पी. पचोरी, कार्यक्रम समन्वयक एवं डॉ. एस.एस. सारंगदेवोत, विशेषज्ञ पौध संरक्षण
कृषि विज्ञान केन्द्र, नीमच