शकरकंद की खेती
द्वारा, दिनांक 26-08-2019 11:20 AM को
जलवायु एवं भूमि: उपजाऊ बलुई दोमट भूमि इसके लिए उपयुक्त रहती है। अन्य प्रकार की मिट्टी में जिसमें जल निकास अच्छा हो इसकी खेती की जा सकती है। इसके लिए उष्ण जलवायु उपयुक्त रहती है।
उन्नत किस्में: पूसा सफेद, पूसा लाल, पूसा सुनहरी, एल-20 एवं श्री अरूण, श्री वरूण शकरकंद की उन्नत किस्में हैं।
बुवाई: शकरकंद की फसल के लिए बेलों के ऊपरी भाग की 15 से 20 से.मी. लम्बी कटिंग लेवें। इन्हें 48 घंटे तक छाया में गीले टाट में ढक कर रखने के उपरान्त 25 से.मी. की दूरी पर लगायें। प्रति हैक्टर लगभग 66000 कटिंग की आवश्यकता होती है। लगाने का उपयुक्त समय जून-जुलाई है। शरककंद की बेल की रोपाई करने से पहले एक मीटर चैड़ी तथा 15-20 से.मी. ऊँची क्यारी बना लेते हैं। क्यारी के दोनों किनारों पर शरककंद की बेल को यू का आकार बना कर 30 से 45 से.मी. की दूरी पर लगाते हैं। पौधें की वृद्धि होने के समय भूमि पर फैल रहे तने को दो-तीन बार 20-25 दिन के अंतराल पर जमीन से उठा देना चाहिए इससे तना अन्यत्र जड़ नहीं बनाता तथा एक स्थान पर ही शकरकंद के कंद बनते हैं। इस प्रकार एक स्थान से लगभग 3-4 किलोग्राम शरककंद प्राप्त किया जा सकता है।
खाद एवं उर्वरक: अच्छी फसल के लिए 120 से 150 क्विंटल प्रति हैक्टर की दर से गोबर की खाद खेत तैयार करते समय डालें। इसके अतिरिक्त 60 किलो फाॅस्फोरस, 100 किलो पोटाश डोलियाँ बनाते समय देवें। 50 किलो नत्रजन दो बराबर भागों में फसल लगाने के एक व दो माह बाद देवें।
सिंचाई एवं निराई गुड़ाई: शरककंद की फसल को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है। कटिंग लगाने के बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए जिससे कटिंग में जड़ें निकल आवें। इसके उपरान्त अधिकतम 2-3 सिंचाई की आवश्यकता होती है। बेलें लगाने के एक माह पश्चात् मिट्टी चढ़ावें। खरपतवार नष्ट करने के लिए एक बार निराई-गुड़ाई करें।
खुदाई एवं उपज: उपज 150 से 300 क्विंटल प्रति हैक्टर तक होती है।
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