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फूल गोभी की खेती

द्वारा, दिनांक 26-08-2019 11:23 AM को 340

फूल गोभी की खेती

जलवायु एवं भूमि: फूल गोभी की उचित पैदावार के लिए ठण्डी नम जलवायु की आवश्यकता होती है। यह अधिक ठंड या गर्मी सहन नहीं कर पाती है। शुष्क मौसम और कम नमी भी फसल के लिए अनुकूल नहीं हैं। फूल आने के समय अधिक तापमान होने से फूल पीले पड़ जाते हैं तथा उसके बीच छोटी-छोटी पत्तियां उग आती हैं। अगेती किस्मों को पिछेती किस्मों से अधिक तापमान एवं लम्बे दिनों की आवश्यकता होती है। फूल गोभी के लिए बलुई दोमट मिट्टी उत्तम रहती है जिसमें पोषक तत्वों और जीवांश की पर्याप्त माात्रा हो तथा पर्याप्त नमी हो। साथ ही जल निकास की समुचित व्यवस्था भी होना आवश्यक है।

उन्नत किस्मेंः

अगेती किस्में: इनकी बुवाई मई से जून के अंत तक की जाती है - अर्ली कुंआरी, पूसा कातकी, पूसा दीपाली, पूसा अर्ली सिंथेटिक आदि प्रमुख किस्में हैं।

मध्यवर्ती किस्में: इनकी बुवाई जुलाई से अगस्त तक की जाती है - इम्प्रूव्ड जापानीज, पूसा हाइब्रिड-2, पूसा हिम ज्योति आदि प्रमुख किस्में हैं।

पिछेती किस्में: इनकी बुवाई सितम्बर से मध्य अक्टूबर तक की जाती है - स्नोबाल-16, पूसा स्नोबाल के-1, हिसार-1, डानिया आदि प्रमुख किस्में हैं।
फूल गोभी की किस्मों का चुनाव करते समय विशेष ध्यान देने योग्य बात है कि यदि पिछेती किस्मों को जल्दी बोया जाय तो पत्तों की वृद्धि ज्यादा होती है और फूलों की कम। यदि अगेती किस्मों को देर से बोया जाय तो उनका फूल छोटा रह जाता है।

नर्सरी तैयार करना: फूल गोभी की पौध तैयार करने के लिए बीजों की बुवाई उठी हुई क्यारियों में की जाती है। क्यारियों के लिए उपजाऊ एवं अच्छे जल निकास वाली भूमि का चयन करना चाहिए। बुवाई से पूर्व बीजों को कैप्टान या थाइरम 2 से 3 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।
गोभी की अगेती किस्मों की बुवाई मई से जून के अंत तक, मध्यकालीन किस्मों की बुवाई जुलाई से अगस्त तक तथा पिछेती किस्मों की बुवाई सितम्बर से मध्य अक्टूबर तक कर देनी चाहिए। अगेती किस्मों के लिए 600 से 700 ग्राम तथा मध्यकालीन व पिछेती किस्मों के लिए 375 से 400 ग्राम बीज प्रति हैक्टर पर्याप्त होता है। बीज को कतारों में बोयें तथा मिट्टी की बारीक परत से ढक दें। सिंचाई फव्वारे से करें।

रोपण: बुवाई के 4 से 5 सप्ताह में पौध खेत में लगाने योग्य हो जाती है। अतः उचित दूरी पर उनकी खेत में रोपाई कर देनी चाहिए। अगेती किस्मों में कतार से कतार तथा पौधे से पौधे की दूरी 45 से.मी. व पिछेती किस्मों में कतार से कतार की दूरी 60 से.मी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 45 से.मी. रखनी चाहिए। रोपाई से पूर्व प्रति हैक्टर 300 ग्राम आॅक्सीलूरेफेन (400 ग्राम घोल) भूमि में मिलावें, तत्पश्चात् फसल की 45 दिन की अवस्था पर एक गुड़ाई करें।

खाद एवं उर्वरक: खेत की तैयारी के समय 250 से 300 क्विंटल अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद भूमि में मिला दें। इसके अतिरिक्त 120 से 150 किलो नत्रजन, 80 किलो फाॅस्फोरस तथा 60 से 80 किलो पोटाश प्रति हैक्टर की दर से देवें। नत्रजन की आधी मात्रा तथा फाॅस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा पौध लगाने के समय भूमि में मिला देवें। बची हुई नत्रजन की मात्रा पौध लगाने के 6 सप्ताह बाद देवें। फूल गोभी की फसल हेतु जिंक व बोरोन की कमी वाले क्षेत्रों में जिंक सल्फेट 5 किलोग्राम प्रति हैक्टर व बोरेक्स 10-15 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करें।

सिंचाई एवं निराई गुड़ाई: पौध लगाने के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। बाद में आवश्यकतानुसार समय-समय पर सिंचाई करते रहें। हल्की मिट्टी में 5 से 6 दिन बाद तथा भारी मिट्टी में 8 से 10 दिन बाद सिंचाई करनी चाहिए। खेत में खरपतवार की वृद्धि रोकने के लिए निराई-गुड़ाई करना आवश्यक है। फसल में 2 से 3 बार निराई-गुड़ाई करने की आवश्यकता पड़ती है। रोपाई के 4-5 सप्ताह बाद पौधे पर मिट्टी चढ़ाएँ जिससे बढ़वार अच्छी होती है।

कीट प्रबंध:

पत्ती भक्षक कीट: इसमें आरा मक्खी, फली बीटल, पत्ती भक्षक लटें, हीरक तितली एवं गोभी की तितली मुख्य हैं। ये कीट पत्तियों को खाकर नुकसान पहुँचाते हैं। नियंत्रण हेतु फूल बनने से पूर्व मैलाथियाॅन 5 प्रतिशत अथवा कार्बोरिल 5 प्रतिशत के 20 किलो चूर्ण का प्रति हैक्टर की दर से भुरकाव करना चाहिए। फूल बनने के बाद एक मिलीलीटर मैलाथियान 50 ई.सी. का प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। हीरक तितली हेतु कीटनाशी का महीन बूँदों के रूप में छिड़काव करना उत्तम पाया गया है। आवश्यकतानुसार छिड़काव 15 दिन के बाद दोहरावें।

मोयला: ये कीट पत्तियों से रस चूसते हैं जिससे पत्तियां पीली पड़ जाती हैं। नियंत्रण हेतु कार्बोरिल 5 प्रतिशत चूर्ण का 20 से 25 किलो प्रति हैक्टर की दर से भुरकाव करें या मैलाथियान 50 ई.सी. एक मिलीलीटर का प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।

डाइमंड बेक  मोथ: बीटी के (बेसिलस थुरिंजेंसिस कस्टकी) 500 मि.ली.  प्रति हैक्टर के दो छिड़काव प्रथम छिड़काव रोपण के 25 दिन बाद एवं दूसरा इसके 10 दिन बाद करें। अंतिम छिड़काव फसल काटने के 4 सप्ताह पूर्व करें अथवा स्पाइनोसेड 25 एस.सी. 15 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हैक्टर की दर से 3 बार छिड़काव करें या प्रोफेनोस 40 ई.सी. 1000-1500 मिली लीटर प्रति हैक्टर या बुलडाक 25 एस.सी. 760-1000 मि.ली. प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव अत्यन्त उपयुक्त पाये गये हैं।

व्याधि प्रबंध:

भूरी गलन या लाल सड़न: यह रोग बोरोन तत्व की कमी के कारण होता है। गोभी के फूलों पर गोल आकार के भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं जो बाद में फूल को सड़ा देते हैं। नियंत्रण हेतु रोपाई से पूर्व खेत में 10 से 15 किलो बोरेक्स प्रति हैक्टर के हिसाब से प्रयोग करना चाहिए अथवा फसल पर 0.2 से 0.3 प्रतिशत बोरेक्स के घोल का छिड़काव करना चाहिए।

आर्द्र गलन: यह रोग गोभी की अगेती किस्मों में नर्सरी अवस्था में होता है। जमीन की सतह पर स्थित तने का भाग काला पड़कर कमजोर हो जाता है तथा नन्हे पौधे गिरकर मरने लगते हैं। नियंत्रण हेतु बुवाई से पूर्व बीजों को थाइरम या कैप्टान 3 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। रोग के लक्षण दिखाई देने पर बोर्डो मिश्रण 2:2:5 अथवा काॅपर आॅक्सी क्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें।

काला सड़न: पौधों की पत्तियों की शिराएँ काली दिखाई देती हैं। उग्रावस्था में यह रोग गोभी के अन्य भागों पर भी दिखाई देता है जिससे फूल के डंठल अंदर से काले होकर सड़ने लगते हैं। नियंत्रण हेतु बीजों को बुवाई से पूर्व स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 250 मिलीग्राम अथवा बाविस्टिन एक ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में 2 घंटे उपचारित कर छाया में सुखाकर बुवाई करें। पौध रोपण के पूर्व पौध की जड़ों को स्ट्रेप्टोसाइक्लिन एवं बाविस्टिन के घोल में एक घंटे तक डुबोकर लगावें तथा फसल में रोग के लक्षण दिखने पर उपरोक्त दवाओं का छिड़काव करें।

झुलसा: इस रोग से पत्तियों पर गोल आकार के छोटे से बड़े भूरे धब्बे बन जाते हैं तथा उनमें छल्लेनुमा धारियाँ बनती हैं, अन्त में धब्बे काले रंग के हो जाते हैं। नियंत्रण हेतु जाइनेब या मैंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। छिड़काव आवश्यकतानुसार 5 दिन के अन्तराल पर दोहरावें।

उपज: समुचित आकार के सफेद एवं ठोस फूलों को तोड़ लेना चाहिए। अगेती फसल की उपज कम और मध्य एवं पिछेती फसलों की पैदावार अधिक होती है। अगेती फसल से 150 से 200 क्विंटल तथा मध्य एवं पिछेती फसल से 200 से 300 क्विंटल प्रति हैक्टर उत्पादन होता है।

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