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परवल की खेती 

द्वारा, दिनांक 21-08-2019 02:34 PM को 258

परवल की खेती 

परिचय : परवल एक सुपाच्य, पौष्टिक, स्वास्थ्यवर्धक एंव औषधीय गुणों से भरपूर लोकप्रिय सब्जी है। इसका उपयोग मुख्य रुप से सब्जी, अचार और मिठाईयां बनाने के लिए किया जाता है। परवल सब्जी की फसलो में आता है, इसकी खेती बहुवर्षीय की जाती है l

भूमि एवं जलवायु : परवल की खेती गर्म एवं आद्र जलवायु वाले क्षेत्रो में अच्छी तरह से की जाती है जहाँ पाला नहीं पड़ता है l सर्दियों में पौधों की बढ़वार नहीं होती है, इसकी खेती हेतु जीवांशयुक्त हलकी दोमट मृदा जिसमे जल निकास की व्यवस्था हो सर्वोत्तम मानी जाती है l

परवल की किस्मे :
स्वर्ण रेखा - फलों पर सफेद धारियाँ होती है, फल की लम्बाई 8-10 से.मी. तथा औसत वजन 30-35 ग्राम होता है । फल गूदेदार तथा बीज बहुत मुलायम होता है। इस प्रजाति की सबसे बड़ी विशेषता प्रत्येक गाठों पर फल का लगना है । औसत उपज 200-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
स्वर्ण अलौकिक - इस किस्म के फल अंडाकार होते हैं। फल मध्यम आकार के एंव 5-7 सेमी. लम्बें होते है। फलों में बीज बहुत कम और गूदा ज्यादा होता है। औसत उपज 220-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
डी.वी.आर.पी.जी.-1 -  इस किस्म के फल लम्बें, मुलायम एंव हल्के हरे रंग के होते हैं। फलों में बीज की मात्रा कम एंव गूदा ज्यादा होता है। औसत उपज 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। यह मिठाई बनाने के लिए काफी उपयुक्त है।
डी.वी.आर.पी.जी-2 - इस प्रजाति के फलों पर हल्की धारियाँ पाई जाती है। फल मोटे एंव पतले छिलके वाले होते है और दूरस्थ बाजारों में बेचने के लिए उत्तम है। औसत उपज 310 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
डी.वी.आर.पी.जी-105 -  इस किस्म के फलों में बीज नहीं बनता है और लगाते समय नर पौधों की आवश्यकता नहीं होती है। फल मध्यम आकार के एंव किनारे की तरफ हल्का धारीदार होता है। औसत उपज 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
इसके अतिरिक्त स्थानीय किस्मे जैसे बिहार शरीफ, डंडाली, गुल्ली, कल्याणी, निरिया, संतोखिया तथा उन्नतशील किस्मे जैसे की एफ. पी. 1, एफ. पी. 3,  एफ. पी. 4, एच. पी. 1, एच. पी. 3, एच. पी. 4 एवं एच. पी. 5, फैजाबाद परवल 1 , 3 , 4 तथा चेस्क सिलेक्शन 1 एवं 2, चेस्क हाइब्रिड 1 एवं 2 भी उगाई जाती है l

खेत की तैयारी : खेत की तैयारी के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करके दो-तीन जुताई कल्टीवेटर से करना चाहिए l जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर भुरभुरा बना लेना चाहिए l आख़िरी जुताई ये पूर्व खेत में 20 से 25 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाएं l

परवल की रोपाई : परवल की फसल इसके सकर या कटिंग के द्वारा लगायी जाती है l कटिंग द्वारा रोपाई आसानी और जल्दी से की जा सकती है l कटिंग द्वारा लगायी गयी फसल जल्दी तैयार हो जाती है l

कटिंग या सकर की मात्रा : परवल में कटिंग या सकर की संख्या रोपाई की दूरी पर निर्भर करती है l रोपाई की दूरी पर एक मीटर x डेढ़ मीटर रखने पर 4500 से 5000 तथा एक मीटर x दो मीटर की दूरी रखने पर 3500 से 4000 कटिंग या सकर प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है l कटिंग की लम्बाई एक मीटर से डेढ़ मीटर रखी जाती है जिसमे 8 से 10 गांठे हो l कटिंग को गड्ढो या नालियो की मेड़ों पर 8 से 10 सेंटीमीटर गहराई पर गाड़ते है l मादा और नर कटिंग का अनुपात 10:1 रखा जाता है l

रोपाई का समय एवं विधि : रोपाई बोनी किये जाने वाले क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग समय पर की जाती है l कटिंग या सकर एक वर्ष पुराने पौधे से फल आने की अवस्था में लेना चाहिए इसके लिए अक्टूबर माह उपयुक्त है l रोपाई का कार्य नवम्बर में नदी के कछारों में करते है l सामान्य अवस्था में फरवरी से मार्च तक रोपाई करते है l कटिंग या सकर की रोपाई समतल भूमि, मेड़ों या गड्ढो में की जाती है l

पौध तैयार करना : इसको पौधे तैयार करके भी लगाया जा सकता है इसके लिए एक वर्ष पुराने पौधों को चुनते है। तने में जड़ बनाने के लिए पहले तने को छोटे-छोटे टुकडों में इस प्रकार काटते हैं कि प्रत्येक टुकड़े में 3-4 गाँठ रहें । सितम्बर-अक्टूबर के महीने में इन टुकड़ों को नर्सरी या पालीथीन की थैलियों में लगाते हैं। रोपाई हेतु पौधे 2-3 महीने में तैयार हो जाते है।

नर व मादा पौधों संतुलन : परवल में नर व मादा पुष्प अलग अलग पौधे पर लगते हैं, अत: अच्छी उपज के लिए नर व मादा पौधों का संतुलन खेत में बनाये रखना चाहिए । अच्छी उपज के लिए प्रत्येक 10 मादा पौधे के साथ एक नर पौधे का होना आवश्यक है।

खाद एवं उर्वरको का प्रयोग : परवल की फसल हेतु 20 से 25 टन प्रति हेक्टेयर की दर से अच्छी सड़ी गोबर की खाद आख़िरी जुताई के समय खेत में अच्छी तरह मिला देना चाहिए इसके साथ ही 90 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में प्रति हेक्टेयर देना चाहिए l नत्रजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस और पोटाश  की पूरी मात्रा खेत तैयारी के समय देना चाहिए तथा नत्रजन की आधी मात्रा फूल आने की अवस्था में देना चाहिए l

सिंचाई : कटिंग या सकर की रोपाई के बाद नमी के अनुसार खेत में सिंचाई करनी चाहिए l सर्दी में 15 से 20 दिन के अन्तराल पर तथा गर्मियों में 8 से 10 दिन के अन्तराल पर सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है l वर्षा कल में लम्बी सुखा अवधि होने पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए l गर्मी में जब पौधों पर कल्ले विकसित होते है उस समय पानी की ज्यादा आवश्यकता पड़ती है। फलन के समय खेत में उचित नमी रहने पर उपज बढ़ जाती है।

निराई-गुड़ाई : परवल की रोपाई के बाद निराई-गुड़ाई करके खेत को साफ़ रखना चाहिए l पूरे साल निराई-गुड़ाई करने पर फल अधिक लगते है जिससे की पैदावार अधिक मिलती है l लताओं की रोपाई करने के बाद फल लगने की अवधि तक आवश्यकतानुसार  निराई  गुड़ाई करके खेत को खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए । रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडीमेथालिन 1 किलोग्राम सक्रीय तत्व को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से पौध लगाने के 2 दिन पूर्व छिड़काव करना चाहिए ।

लताओं की ट्रेनिंग : परवल की फसल में लताओं को सहारे से ऊपर की ओर लगभग एक मीटर ऊँचाई तक चढ़ाते है इससे फसल में परागण की क्रिया अधिक होने से फलों की संख्या बढ़ जाती है l

लताओं की प्रूनिंग : जब फसल को दूसरे साल के लिए छोड़ा जाता है तो सर्दी से पहले जमीन से 30 सेंटीमीटर ऊचाई से लताओं की कटाई करनी चाहिए l

प्रमुख कीट एंव रोग :

फल मक्खी -  यह मक्खी कोमल फलों के छिलके के नीचे अण्डे देती है जिसमें लार्वा बढ़कर फलों को नष्ट कर देते हैं। इसके लिए डाईमिथोएट 30 ई सी की एक मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें l
तना छेदक - यह कीट पौधों के मुख्य तने पर छेद बना कर अंदर चला जाता है तथा अन्दर ही सुरंग बनता है जिससे पौधे का उपरी भाग सूख जाता है। इससे बचाव के लिए कार्बोफ्यूरान 3 G का प्रयोग 30 से 40 दिन के अन्तराल पर दो बार किया जाता है l इसका प्रयोग फल लगने के बाद नहीं करना चाहिए ।
मृदुरोमिल आसिता - इस रोग से पत्तियों पर कोणीय धब्बे बनते हैं । पत्ती की निचली सतह पर मृदुरोमिल फफूंद दिखाई देती है। रोकथाम के लिए खड़ी फसल में मैंकोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें ।
पाउडरी मिल्ड्यू  इस रोग में पत्तियों पर सफेद चूर्णयुक्त धब्बे दिखाई देते है । रोकथाम के लिए हेक्साकोनाजोल या केराथेन एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर  छिड़काव करें l आवश्यकतानुसार 10 दिन के अन्तराल दोहराएँ ।
फल का पीला होना - परवल का फल लगते ही पीला हो जाता है और पके फल जैसा दिखाई देता है और बाद में पौधे से टूट कर गिर जाता है । इसका दो कारण हो सकते है
1. नर फूल की कमी के कारण परागण व गर्भाधान क्रिया का न होना : ऐसी दशा में नर व मादा पौधों को 1:10 अनुपात में लगा कर फल का पीला होना रोका जा सकता है। इसके अलावा यह भी सावधानी रखनी चाहिए कि फूल आने के समय किसी प्रकार के कीटनाशी दवा का प्रयोग दिन के समय न करें अन्यथा परागण करने वाली मधुमक्खियों के मरने का डर रहता है । यदि कीट नाशी का प्रयोग करना ही पड़े तो शाम के समय करें।
2. फल मक्खी द्वारा कोमल फलों का क्षतिग्रस्त होना : इसके लिए फल मक्खी का नियंत्रण करें ।

फलों की तुड़ाई : फल बनना शुरू होने के 15 से 18 दिन बाद तुड़ाई करनी चाहिए l एक बार तुड़ाई आरम्भ होने के बाद प्रति सप्ताह फसल में फलों की तुड़ाई करनी चाहिए l


संदीप परमार 

सहायक संचालक कृषि 

जिला : नीमच (मध्य प्रदेश) 

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