ईसबगोल की खेती
उन्नत जातियां : गुजरात ईसबगोल 1 एवं गुजरात ईसबगोल 2 मुख्य उन्नत जातियां हैं। अखिल भारतीय समन्वित औषधीय एवं सुगन्धित पौध परियोजना की अक्टूबर 1998 में हुई कार्यशाला में एक नई जाति जवाहर ईसबगोल 4 को म . प्र. के लिए अनुमोदित एवं जारी की गई हैं । इस जाति की उपज गुजरात ईसबगोल से 25-30 प्रतिशत अधिक हैं।
बीज की मात्रा : कतारों में बोने पर 4-5 किलो एवं छिट्काव बोने पर 6-7 किलो बीज प्रति हेक्टर बोयें।
बीजोपचार : डायथेन एम - 45 2 ग्राम एवं 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करें।
बोआई का समय : नवम्बर का प्रथम सप्ताह से द्वितीय सप्ताह तक बोआई करें। दिसम्बर माह तक बोआई करने पर उपज में कमी आ जाती हैं।
बुवाई की विधि : कतार से कतार की दूरी 30 से. मी. एवं पौधे की दूरी 5 से. मी. रखे । बीज की गहराई 2-3 से.मी. रखे । इससे ज्यादा गहरा बीज न बोयें । बोने के पहले बीज में बराबर मात्रा में बालू रेत मिलाकर बुवाई करें । छिट्काव पद्धति से बोने पर मिट्टी में ज्यादा गहरा न मिलावें।
खाद एवं उर्वरक : सड़ी गोबर की खाद 15-20 टन प्रति हेक्टर डालें । 20 किलो नत्रजन, 40 किलो फॉस्फोरस एवं 20 किलो पोटाश प्रति हेक्टर बुवाई के समय डालें। 20 किलो नत्रजन प्रति हेक्टर बुवाई के 30 दिन बाद कल्ले निकलने की अवस्था पर डालें।
सिंचाई : बुवाई के तुरंत बाद सिंचाई देवें। अच्छे अंकुरण के लिए भारी जमीन में 5-6 दिन बाद गलवन देवें । इसके बाद प्रथम सिंचाई 30 दिन बाद कल्ले अवस्था एवं दूसरी सिंचाई 60 दिन बाद देवें। फूल एवं दाना भरने की अवस्था पर सिंचाई न दें। इनमें दो से ज्यादा सिंचाई देने पर रोगों का प्रकोप बढ़ जाता हैं तथा उपज में कमी आ जाती हैं।
पौध संरक्षण :
पौध विगलन रोग : फसल अंकुरण के बाद पौधे मर जाते हैं। इस रोग का संक्रमण भूमि की निचली सतह पर होता हैं जिससे पौधे मुरझाकर गिर जाते हैं। रोग के नियंत्रण के लिए बीजोपचार करें तथा रोग का प्रकोप होने पर कॉपर ओक्सीक्लोराइड 50: डब्ल्यू पी . की 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर में घोलकर भूमि को अच्छी तरह से तर करें।
डाउनी मिल्ड्यू : इस रोग के लक्षण पौधों में बाली निकलते समय दिखाई देते हैं। सर्वप्रथम पत्तियों की ऊपरी सतह पर सफ़ेद या कत्थई रंग के धब्बे दिखाई देते हैं तथा पत्ती के निचले भाग में सफ़ेद चूर्ण जेसा कवक जाल दिखाई देता हैं। बाद में पत्तियां सिकुड़ जाती हैं तथा पौधों की बढ़वार रुक जाती हैं जिसके परिणामस्वरूप डंठल की लम्बाई ए बीज बनना एवं बीज की गुणवत्ता प्रभावित होती हैं । रोग नियंत्रण हेतु स्वस्थ व प्रमाणित बीज बोयें, बीजोपचार करें एवं कटाई के बाद फसल अवशेषों को जला देवें। रोग का प्रकोप होने पर 3 ग्राम डायथेन एम् - 45 या 3 ग्राम कापर ओक्सीक्लोराइड प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
फसल की कटाई : फसल 115-120 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं, फसल पकने पर पौधों की ऊपरी पत्तियां पीली एवं नीचे की पत्तियां सूख जाती हैं। बालियों को हथेली में मसलने पर दाने आसानी से निकल जाते हैं। इसी अवस्था पर फसल की कटाई करें। कटाई सुबह के समय करने पर झड़ने की समस्या से बचा जा सकता हैं । फसल कटाई देर से न करें अन्यथा दाने झड़ने से उपज में बहुत कमी आ जाती हैं। मावठा आने की स्थिति में फसल कटाई 2-3 दिन जल्दी कर लेवें।
उपज : उन्नत तकनीक से खेती करने पर १५.१६ क्विंटल प्रति हेक्टर उपज मिल जाती हैं ।