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अफीम की उन्नत खेती

द्वारा, दिनांक 21-08-2019 03:28 PM को 1998

अफीम की उन्नत खेती

अफीम की खेती के लिए नारकोटिक्स विभाग द्वारा लाइसेंस दिया जाता है और उसके पश्चात किसान द्वारा इसकी खेती की जाती है। अफीम की उपज निर्धारित मानको के अनुसार शासन द्वारा क्रय की जाती है जिसमे निर्धारित औसत उपज देने के लिए अफीम की खेती वैज्ञानिक तकनीकी से करना आवश्यक  है।

भूमि का चुनाव एवं तैयारी :  अफीम के लिए मध्यम से गहरी भूमि, जिसकी जलधारण क्षमता एवं जीवांश की मात्रा अधिक हो उपयुक्त्त होती है। दो तीन बार आड़ी - खड़ी जुताई कर दो बार बखर चलावे तथा बाद में पाटा चलाकर मिट्टी  भुरभुरी कर ले तथा पुरानी फसल  के अवशेष नष्ट  कर देवें ।

उन्नत किस्मे : अफीम की उन्नत किस्मे है जो निम्न प्रकार है।  जवाहर अफीम - 16, आई. सी. 42, जवाहर अफीम - 539, एम.ओ. पी. - 540, चेतक

बीज की मात्रा : कतार से बोने पर 5 -6  किलो एवं छिड़काव विधि से बोने पर 7 -8  किलो बीज प्रति हैक्टर की दर से बुवाई करें।

बीज उपचार : मेटालेक्सिल 35 SD 8 -10  ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीज को उपचारित करें।

बोनी का समय : नवम्बर  के प्रथम या द्वितीय  सप्ताह  में 20 - 25 डिग्री सेल्सियस  तापमान रहने पर बोनी करें।

बोनी की विधि : अफीम की बोनी कतारों  में करे कतारों की दुरी 30 से.मी. एवं पौधो  की दूरी 8 -10 से.मी. रखे । अच्छी उपज के लिए 3. 5 - 4.0 लाख पौधे प्रति हेक्टर रखे। क्यारियों में मेड़ के पास एक रस्सी लम्बाई में खींचे। बीज नीचे हाथ रखकर रस्सी के सहारे डाले। रस्सी 30.  से.मी. पर बदले ।

खाद  एवं उर्वरक  : 20  से  30 टन सड़ी गोबर की खाद प्रति हेक्टर डालें। 150 किलों नाइट्रोजन 75  किलो फॉस्फोरस एवं 45 किलो पोटाश प्रति हेक्टर प्रयोग करें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फॉस्फोरस एवं पोटाश  की पूरी मात्रा तथा 20 किलो जिंक सल्फेट बोनी के समय देवें। शेष नाइट्रोजन की मात्रा 35 से 40 दिन   एवं 60 से 65 दिन पर दो बराबर भागो में बाँट कर डालें। इससे ज्यादा नाइट्रोजन नहीं देवें  क्योंकी अधिक नाइट्रोजन से बीमारियो का प्रकोप  बढ़ता है।

सिंचाई : बोने के बाद तुरंत सिंचाई देवें। अच्छे एवं सामान अंकुरण के लिए 5-6  दिन बाद गलवन ( हलकी सिंचाई) देवे। इसके बाद 15-20 दिन के अंतराल पर सिंचाई देते रहे। कली अवस्था, फूल अवस्था एवं डोडा अवस्था पर सिंचाई अवश्य करें। अगलवाण सिंचाई चीरा लगाने के 5 -7  दिन पहले देवे। भारी जमीन में चीरे के बीच सिंचाई न देवें। हल्की जमीन  में 2  या 3 चीरे  के बाद हल्की सिंचाई करें।

छनाईनिंदाई  एवं गुड़ाई  : पहली  छनाई एवं निंदाई गुड़ाई 20 -25 दिन बाद दूसरी छनाई एवं निंदाई, गुड़ाई 35-40 दिन बाद करे। छनाई में रोगग्रस्त, कीटग्रस्त,पीले एवं अविकसित छोटे पौधे अवश्य हटा देवें। अंतिम छनाई 50 -55  दिन बाद कर पोधे की दुरी 8 -10  से.मी. रखे। छनाई में निकाले गए पौधो को मेड़ पर न छोड़े इन्हे गड्डे में दबा देवें।

कीट एवं बीमारियां :

दिमक व जड़ काटने वाली इल्ली : भूमि में मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण 20-25 किलो प्रति हेक्टर की दर से बोनी के पहले मिलावे। खड़ी में प्रकोप होने पर नियंत्रण के लिए क्लोरपायरीफास  20 ई.सी. 3-4  लीटर  प्रति हेक्टर की दर से सिंचाई के पानी के साथ बून्द-बून्द टपका कर देवें।

डोडा छेदक इल्ली : ऐसीफेट 1 ग्राम या क्लोरपायरीफास 20 ई.सी. 2 मिलीलीटर प्रति लिटिर पानी में मिलाकर छिड़काव करे।

हरा तेला एवं मोयला : मिथाईल डिमोटोंन 25 ई सी या डायमिथोएट 30 ई.सी. 1 मि.ली. या थायोमीथेक्साम या ऐसिटामिप्रीड 0.3 ग्राम या इमिडाक्लोप्रिड 0.3  मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करे।

काली मिस्सी (डाउनी मिल्ड्यू) : मेटाक्सिल 8 % + मैकोजेब 64 % रेडिमिक्स फफूंदीनाशक की 2 ग्राम मात्रा लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर इसके तीन छिड़काव 35, 55  व  75 की फसल पर करें।

सफेद मिस्सी (पावडरी मिल्ड्यू) : घुलनशील  गंधक 2 ग्राम  या केराथियान 0. 3 मिलीलीटर या हेक्साकोनाज़ोल 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के मान से मिलाकर छिड़काव करे।

जड़ सड़न : मैकोजेब 2 ग्राम  एवं 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति लीटर पानी में घोल घोल बनाकर जड़ सड़न वाले क्षेत्र में भूमि में डालें।

तना एवं डोडा सड़न : यह रोग जीवाणु से होता है स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 2 ग्राम 15  लीटर पानी में मिलाकर छिड़के साथ में हेक्साकोनोजोल 30 मिलीलीटर प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर  छिड़के।

भुपाड़ा (ओरोबेन्की) : फूल आने के पहले ही भुपाड़ा खेत से निकल देवे। सामूहिक नियंत्रण करे। गर्मी में गहरी जुताई करे। फसल चक्र अपनाये।

अफीम से उपज के लिए क्या करें : 
1- बीजोपचार करें।
2- समय पर बोनी करें। छनाई  समय  पर करें।
3- फफूंदनाशक  एवं कीटनाशक  दवाए निर्धारित मात्रा  में प्रयोग करें।
4- कली, पुष्प व डोडा अवस्थाओ पर सिंचाई अवश्य करें।
5- नक्के ज्यादा  गहरे न लगाये।
6- लूना ठंडे मौसम में ही करें।
7- काली मिस्सी या कोडिया से बचाव  के लिए दवा  छिड़काव 20 -25 दिन पर अवश्य  करें।
8- हमेशा अच्छे बीज का उपयोग करें।
9- समस्या आने पर तुरंत रोग ग्रस्त  पौधो  के साथ कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करें।
10- खसखस  उत्पादन लिए डोडा पूर्ण पकने पर ही कटाई करें।

क्या नही करें :
1- अधिक नत्रजन नही डालें।
2- अधिक सिंचाई न देवें।
3- 40 पौधे प्रति वर्ग मीटर से ज्यादा पौधे न  रखे।
4- काली मिस्सी आने का इंतजार न करें।  दवाओं का छिड़काव नियमित करें।
5- काली मिस्सी/कोडिया ग्रसित पौधो को नष्ट करें।  खेत की मेड पर न डालें।
6- दवाओ को अलग-अलग ही  छिड़के।  जब तक स्पष्ट निर्देश न हो तब तक आपस में न मिलावे।
7- केराथियान  छिड़काव के साथ यूरिया न मिलावे।
8- भुपाड़ा ग्रसित खेत में अफीम न लेवें।  भुपाड़ा को फूल आने के पहले नष्ट कर देवें।
9- एक ही खेत में लगातार अफीम न बोये।  फसल चक्र अपनायें।
10- चीरा देर से न लगाएं।
11- अफीम के आसपास सफेद मस्सी से बचने के लिए मेथी, धनिया, मटर, बटला एवं जीरा न लगावें।

डॉ सी पी पचोरी कार्यक्रम समन्वयक,
डॉ श्याम सिंह सारंगदेवोत,
डॉ पी एस नरुका
कृषि विज्ञान केंद्र नीमच 458441

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