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बेल की उन्नत बागवानी

द्वारा, दिनांक 18-10-2019 03:25 PM को 177

बेल की उन्नत बागवानी

बेल धार्मिक महत्व का फल वृक्ष है इसमें पाये जाने वाला रसायन मारमेलोसिन, अजीर्ण, पेचिश एवं डायरिया के लिए अचूक औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। खनिज लवणों एवं विटामिन्स की दृष्टि से बेल महत्वपूर्ण स्थान रखता है।  राइबोफ्लेबिन नामक विटामिन (1.19 मि.ग्रा. प्रति 100 ग्राम) अन्य फलों की तुलना में अधिक पाया जाता है। राजस्थान के सभी जिलों में बेल की खेती की जा सकती है।

जलवायु एवं भूमि : बेल इतना सहिष्णु पौधा होता है कि हर पकार की जलवायु में भली-भांति उग जाता है। समुद्रतट से 700-800 मीटर ऊंचाई तक के प्रदेशों में इसके पौधे हरे-भरे पाये जाते हैं।  विशेषतः यह शुष्क जलवायु को अधिक पसन्द करता है।इसमें पाले को सहन करने की भी क्षमता होती है। बेल हर प्रकार की भूमि में अच्छी तरह उगता है लेकिन अच्छी खेती व पैदावार के लिए उपजाऊ दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त होती है। यह अम्लीय एवं क्षारीय (5-8 पी.एच मान) भूमि पर भी सफलतापूर्वक चलता है।

उन्नत किस्में :

कागजी : इस किस्म के फल का छिलका कागज जैसा पतला होने के कारण इसे कागजी बेल भी कहते हैं।

मिर्जापुरी : मध्यम आकार के गोल चिकनी सतह तथा पकने पर गाढे पीले रंग वाले फल होते हैं। फलों का छिलका पतला, गूदा मुलायम, भूरे रंग का, हल्के रेशेयुक्त एवं मीठा होता है।

अन्य किस्में नरेन्द्र बेल-1, 2, 5 नवीन किस्में हैं जिन्हें नरेन्द्र देव कृषि विश्वविद्यालय, फैजाबाद (यू.पी.) से प्राप्त कर सकते हैं।    

प्रवर्धन : बेल का प्रवर्धन साधारणतया बीज द्वारा ही किया जाता है। बेल का वानस्पतिक प्रवर्धन  कलिकायन द्वारा भी सरलता तथा पूर्ण सफलता के साथ किया जा सकता है। मई या जून के महीने में जब फल पकने लगता है, पके फल के बीजों को निकालकर तुरन्त नर्सरी में बो देना चाहिए। जब पौधा 20 से.मी. का हो जाए तो उसे दूसरी क्यारियों में 30 से.मी. दूरी पर बदल देना चाहिए। दो वर्ष के पश्चात् पौधों पर चश्मा बांधा जाता है। मई से जुलाई तक चश्मा बांधने में सफलता अधिक प्राप्त होती है।

रोपण : बेल के पौधों का रोपण वर्षा के प्रारम्भिक महीनों में करना चाहिए क्योंकि इन महीनों में नमी होने के कारण नर्सरी से उखाड़े गये पौधे आसानी से लग जाते हैं। उद्यान में बेल के पौधों का स्थाई रोपण करने के लिए उनके लिये गड्डों को गर्मी में खोदना चाहिए ताकि कड़ी धूप से लाभ प्राप्त हो सके। गड्डों का आकार 0.75 ग 0.75 ग 0.75 से.मी. तथा एक गड्डे से दूसरे गड्डे की दूरी 9 मीटर रखनी चाहिए। वर्षा शुरू होते ही इन गड्डों को दो भाग मिट्टी तथा एक भाग खाद से भर देना चाहिए। एक-दो वर्षा हो जाने पर गड्डे की मिट्टी जब खूब बैठ जाए तो इनमें पौधों को लगा देना चाहिए।

खाद एवं उर्वरक : साधारणतया यह पौधा बिना खाद और पानी के भी अच्छी तरह फलता-फूलता रहता है, लेकिन अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए इसमें उचित खाद की मात्रा उचित समय पर देना आवश्यक है। एक फलदार पेड़ के लिए 500 ग्राम नत्रजन, 250 ग्राम फॉस्फोरस एवं 500 ग्राम पोटाश की मात्रा प्रति पेड़ देना चाहिए। चूँकि बेल में जस्ते की कमी के लक्षण पत्तियों पर आते है अतः जस्ते की पूर्ति के लिए 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट का छिड़काव जुलाई, अक्टूबर और दिसम्बर में करना चाहिए।

देखभाल : बेल का वातावरण के प्रति सहिष्णु होने के कारण किसी विशेष देखभाल की आवश्यकता नहीं होती है फिर भी आरम्भ में जब पौधे छोटे-छोटे होते हैं तो गर्मियों में उनकी महीने में दो बार सिंचाई कर देनी चाहिए। लेकिन जब पौधा फलत में आ जाता है तो पूरी गर्मियों में 2-3 बार सिंचाई कर देना काफी होता है। थालों को हमेशा निराई-गुड़ाई करके साफ-सुथरा रखना चाहिए।

फलन : बीजू पौधे 7-8 वर्ष बाद फलने लगते हैं लेकिन कलिकायन से तैयार पौधों में फलत 4-5 वर्ष में शुरू हो जाती है। बेल का पेड़ लगभग 15 वर्ष के बाद व्यवसायिक रूप से फलन में आता है। दस से पन्द्रह वर्ष पुराने पेड़ से 200-400 फल प्राप्त होते हैं।

फलों का तोड़ना तथा पकाना : बेल का डण्ठल इतना मजबूत होता है कि फल पकने के बाद भी पेड़ पर काफी दिन तक लगे रहते हैं। कच्चे फलों का रंग हरा तथा पकने पर पीला-सुर्ख हो जाता है। जब फलों में पीलापन आना शुरू हो जाए उस समय उनको डण्ठल के साथ तोड़ लेना चाहिए।  इस तरह के फल 10-12 दिन में अच्छी तरह पककर तैयार हो जाते हैं।

पैदावार : पूर्ण फलन में आये हुए बेल से 100-300 फल प्रति पेड़ के हिसाब से प्राप्त हो जाते हैं। 

पौध संरक्षण :

कीट एवं ब्याधि प्रबंध : बेल के पेड़ पर रोग तथा कीड़ों का आक्रमण बहुत कम होता है। एकत्रित फलों के गूदे में कभी-कभी गलन की बीमारी लग जाती है, जिससे फल अन्दर ही अन्दर खराब हो जाता है जिसे 0.3 प्रतिशत डाइथेन जेड 78 के घोल से फलों को तोड़ने के बाद उपचारित करके ठीक किया जा सकता है।

      बेल की कोमल शाखाओं तथा पत्तों पर पर्ण सुरंगा का आक्रमण होता है लेकिन इसे विशेष नुकसान नहीं पहुँचता है फिर भी 0.03 प्रतिशत मेटासिस्टॉक के छिड़काव से रोका जा सकता है।      

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