अंजीर की उन्नत बागवानी
अंजीर की उन्नत बागवानी
अंजीर एक पौष्टिक एवं स्वादिष्ट फल है। इसके फलों को सुखाकर उपयोग किया जाता है क्योंकि ताजा फल शीघ्र ही खराब हो जाते हैं। फल में शर्करा, कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन व विटामिन ‘बी‘ तत्व होते हैं।
जलवायु एवं भूमि : यह पौधा उष्ण और समशीतोष्ण होने पर भी पतझड़ का स्वभाव वर्तता है। अंजीर उत्तर भारत के कड़ाके की सर्दी में सुसुप्त हो जाता है तथा ज्यों ही बंसत का आगमन होता है, इसमें नवीन वृद्धि दिखाई देती है परन्तु पश्चिमी भारत में इसकी सुषुप्तावस्था अगस्त सितम्बर में ही आती है और अक्टूबर में नये कल्ले दिखाई पड़ते हैं। भारी मिट्टी अंजीर के लिए काफी लाभप्रद है। रेतीली भूमि में यदि पानी की सुविधा हो तो यह पौधा उग सकता है। पानी का उचित जल निकास सफल खेती के लिए आवश्यक है।
उन्नत किस्में :
पूना अंजीर : घंटी के आकार की हल्की बैंगनी रंग लिये हुए होती है। गूदा गुलाबी रंग का होता है।
मार्सेलीज : समुद्रतल से 1000 मीटर या इससे अधिक ऊंचाई वाले स्थानों के लिये यह एक अच्छी किस्म है। फल पकने पर हल्का हरा, गूदा सफेद तथा खाने में मीठा होता है।
ब्लैक इश्चिया : फल पकने पर काले पड़ जाते हैं और खाने में यह एक अच्छी किस्म है।
ब्राउन टर्की : फल पकने की अवस्था पर हल्के भूरे पड़ जाते हैं तथा गूदा हल्का पीला रंग का होता है तथा खाने में मीठा होता है।
प्रवर्धन : अंजीर का प्रवर्धन कलम द्वारा किया जाता है। प्रवर्धन की यह आसान एवं सस्ती विधि है। कलम लगाने का उपयुक्त समय जनवरी-फरवरी माह है।
रोपण : पौधे लगाने के लिये खेत में 5 से 6 मीटर की दूरी पर 60 X60X60 से.मी. आकार के गड्डे खोदे जाते हैं। इन गड्डों में अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद मिट्टी में मिलाकर गड्डों को पूरा भर देने के बाद पौधों को लगाया जाता है। पौधों को फरवरी माह में लगाना उपयुक्त रहता है। काट-छांट का उपयुक्त समय जनवरी-फरवरी माह है।
खाद व उर्वरक : पौधों को खाद एवं उर्वरक निम्न अनुसार देवेंः
पेड़ों की आयु 1 वर्ष गोबर की खाद 10 किलोग्राम यूरिया 500 ग्राम सुपर फॉस्फेट 800 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश 300 ग्राम
पेड़ों की आयु 2 वर्ष गोबर की खाद 20 किलोग्राम यूरिया 750 ग्राम सुपर फॉस्फेट 1200 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश 400 ग्राम
पेड़ों की आयु 3 वर्ष गोबर की खाद 30 किलोग्राम यूरिया 1500 ग्राम सुपर फॉस्फेट 1800 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश 600 ग्राम
पेड़ों की आयु 4 वर्ष गोबर की खाद 40 किलोग्राम यूरिया 2250 ग्राम सुपर फॉस्फेट 2500 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश 800 ग्राम
पेड़ों की आयु 5 वर्ष गोबर की खाद 50 किलोग्राम यूरिया 3000 ग्राम सुपर फॉस्फेट 3000 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश 1000 ग्रामगोबर की खाद फरवरी माह में तथा अन्य सभी उर्वरक को फरवरी-मार्च माह में देवें।
कटाई छंटाई : अच्छे फल प्राप्त करने के लिये पेड़ों में प्रतिवर्ष कटाई छंटाई का कार्य किया जाना चाहिये। इसके लिये पिछले वर्ष की शाखा को 4 से 5 गांठ छोड़कर काट देना चाहिये। कहीं-कहीं बहुत हल्की काट-छांट की जाती है। काटं-छांट का उपयुक्त समय जनवरी-फरवरी माह है।
कीट एवं ब्याधि प्रबंध :
तना छेदक : कीट पेड़ के तने में छेद करके अन्दर घुस जाते हैं तथा पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं। नियंत्रण हेतु सूखी शाखाओं को काट कर जला देवें। छेद को साफ करके किसी पिचकारी की सहायता से 3 से 5 मिलीलीटर केरोसिन प्रति सुरंग में डालें या रूई का फाहा बनाकर अन्दर रख देवें बाद में छेद को ऊपर से गीली मिट्टी से बन्द कर देवें।
अंजीर बरूथी : यह बरूथी पत्तियों का रस चूसती है जिससे पौधे में प्रकाश संश्लेष्ण की क्रिया प्रभावित होती है। पौधों की बढ़वार व फल बुरी तरह प्रभावित होते हैं। नियंत्रण हेतु प्रोपरजाईट 1.5 मिलीलीटर या फॉसलॉन 0.3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर 20 दिन के अन्तराल पर दो बार छिड़कें।
रतुआ रोग : अंजीर में यह रोग पत्तियों पर लगता है। पत्तियों के निचले भाग पर पीलापन लिये छोटे-छोटे भूरे धब्बे पड़ जाते हैं। रोगग्रस्त पौधों की पत्तियाँ झड़ जाती हैं और फलों के झड़ने की वजह से फल का उत्पादन कम हो जाता है। यह सेरोटीलियम फाइसी कनवर्स नामक कवक के कारण होता है। नियंत्रण हेतु ब्लाईटोक्स 50 का 0.3 प्रतिशत के घोल का छिड़काव या गंधक के महीन चूर्ण का भुरकाव आशातीत परिणाम देता है।
फलों का फटना (Fruit Cracking) : मृदा तथा वायुमण्डलीय नमी की अवस्था में अचानक होने वाले परिवर्तन से फल पकने की अवस्था में फट जाते हैं। भारी वर्षा से ऐसी हानि की सम्भवना होती है। मिट्टी पर्याप्त मात्रा में जैव पदार्थ बनाए रखने से ऐसी स्थिति पर नियंत्रण पाया जा सकता है तथा साथ में बोरेक्स का 0.6 प्रतिशत का छिड़काव फल विकास अवस्था पर लाभदायक रहता है।
अंजीर का फल बिना परागण के विकसित होता है। जिब्रेलिक एसिड (40 मिलीग्राम एक लीटर पानी में) के उपचार से फल लगने में दस प्रतिशत की वृद्धि होती है। 15 दिन पूर्व फल पक जाते हैं और चीनी की मात्रा भी बढ़ जाती है।
फलों की तुड़ाई व पैदावार : मुख्य फसल मई-जुलाई में पककर तैयार होती है। प्रति पेड़ औसतन 20 से 40 किग्रा. फल प्राप्त होते हैं। पके हुए फलों का ज्यादा समय तक भण्डारण नहीं किया जा सकता है। 0 डिग्री सेल्सियस तापमान तथा 90 प्रतिशत आर्द्रता की परिस्थिति में फलों को करीब एक सप्ताह तक भण्डारित किया जा सकता है। पके अंजीर को सुखा कर भी भण्डारित किया जा सकता है।